BHOJPURI Poems by Hareshwar Roy
81. ए सुखारी चाचा: डॉ. हरेश्वर कटहर लेखा मुंह काहे लटकल ए सुखारी चाचा। लागता कि हार तोहरा खटकल ए सुखारी चाचा।। ताल के टोपरा बेंच बांच के लड़ल ह तूं बिधयकी। हरलह त पोंछिया तहार सटकल ए सुखारी चाचा।। भोरहीं भोरहीं तूं त दारु से करत रहलs ह कूल्ला। फुटानी के बरखा त अब चटकल ए सुखारी चाचा।। बहुत दिनन से डूबि डूबि के पीयत रहल ह पानी। लगता कि अबकी टेंगर अंटकल ए सुखारी चाचा।। राजनीति के छोड़s चस्का जा अब कीनs कटोरा। साधू चा के पिछवा चलs लटकल ए सुखारी चाचा।। 80. जाड़ दद्दू: डॉ. हरेश्वर फेर एहू साल बाड़े जाड़ दद्दू आइल बा कूहा के चद्दर में गांव लपेटाइल। दुअरा के कउड़ प लागता मजलिस महंगुआ के मेटा से सूटर खिंचाइल। सतुआ पीसात बाटे लिट्टी बनावे ला दादी खाति माटी के बोरसी पराइल। अंगनाई लिपात बा दुअरवा लिपाता गैंड़ा के खेतवा में कोबिया फुलाइल। पछेया के हवा चुभेला तीर जइसन हड़वा में हमरा बा जड़वा समाइल। 79. हमार सुगउ : डॉ. हरेश्वर हमार सुगउ हो हमार सुगउ हो हमार सुगवा चलि गइलs कवना देसवा हो हमार सुगवा। सवख आ सिंगार अब हम केकरा पर करम मीतवा केकरा पिरितिया में रात- दिन जरम केकरा ऊपर करब अब हम गर