घना अंधेरा है: हरेश्वर राय

सांझ सहमी है, डरा सवेरा है
हर तरफ बिखरा तम घनेरा है।

खौफ़जदा हैं मछलियां क्योंकि
हर घाट पर बैठा हुआ मछेरा है।

चमन के पुष्प भी सहमे- सहमे
हरेक कदम पर खड़ा लुटेरा है।

बस्ती-बस्ती में है डरावनी चुप्पी
हर शहर बस मौत का बसेरा है।

हरेक सांस पर पहरा लगा हुआ
पसरा हर दर पर घना अंधेरा है।

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