सो रहा हूँ अभी: हरेश्वर राय

ऐ लहर! तू ठहर, सो रहा  हूँ अभी
बवंडर! तू ठहर, सो रहा  हूँ अभी।

अभी कंबल से बाहर न झांको रवि
ऐ सहर! तू ठहर, सो रहा  हूँ अभी।

तुमसे सुंदर कोई भी नहीं यामिनी
भर पहर तू ठहर, सो रहा  हूँ अभी।

ऐ चांद! यूं ही गगन में चमकते रहो
निशाचर! तू ठहर, सो रहा हूँ अभी।

ऐ बहारों! चमन में न जाओ अभी
ऐ भ्रमर! तू ठहर, सो रहा  हूँ अभी।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट

मुखिया जी: उमेश कुमार राय

मोरी मईया जी

जा ए भकचोन्हर: डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

डॉ रंजन विकास के फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया - विष्णुदेव तिवारी

डॉ. बलभद्र: साहित्य के प्रवीन अध्येता - विष्णुदेव तिवारी