गुमसुम गोरइया: हरेश्वर राय

मनवां के छोभ खूब अथाह हो गइल
सगी आपन सरउती कटाह हो गइल।

गउआं से कबरि के सहर में झोंकइनी
तs दरद के कठउती कराह हो गइल।

बाटे रिस्ता खतम कुल्हि पुहुप गंध से
हमार सरगम बपउती तबाह हो गइल।

तनवा बा बंधुआ आ मनवा बा बंधुआ
हमर असमय बुढ़उती गोटाह हो गइल।

बिया थाकल दुपहरी ह गुमसुम गोरइया
हाय! डर के सिलउटी निठाह हो गइल।

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