मरल खुसी- उलास।

जीत मरल, गीत मरल, मरल खुसी- उलास।
अब का फूलिहें गुलमोहर, परिजात, पलास।।

हरेक फेंड़ पर बैठल बाटे, गिधवा के परिवार।
पोंछ उठवले रउंदत बाटे पगला संढ़वा घास।।

नदी किनारे बैठल बा बगुला भगतन के पांत।
सुनीं संगी! सिधरी कूल के बाटे पास बिनास।।

चउक, चाह दुकान प होता बोकड़न के भीड़।
होखेला मुंडा गरम सुनिके ओहिजा बकवास।।

दिनहीं दिने होखल जाता जीवन अब जंजाल।
भूख दुख त बढ़ले जाता बढ़त बिया पियास।।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट

मुखिया जी: उमेश कुमार राय

मोरी मईया जी

जा ए भकचोन्हर: डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

डॉ रंजन विकास के फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया - विष्णुदेव तिवारी

डॉ. बलभद्र: साहित्य के प्रवीन अध्येता - विष्णुदेव तिवारी