मरल परल अंबर में चान

आदित उगिहें कि ना उगिहें, बाटे एकर कवन ठेकान।
रात सियाही भइल बिया, मरल परल अंबर में चान।।

खूनी लिपिस्टिक में संडक, अपने ऊपर इतरात बिया।
राजनीति डाएन चुन-चुन के, निर्दोसन के खात बिया।।

फूल का खिलिहें फुलवारी में, नइखन एको पुछवैया।
चारु देनिए जब डर पसरल बा, कइसे बहिहें पुरवैया।।

बीच भंवर में बिया नइया, जिया फंसल बा सांसत में।
जवनो बांचल पतवार रहे, ऊ बड़ुए परल हिरासत में।।

सुनs हरेसर सुख के सपना, का देखतारs अनेरिए में
आस अंजोरिया के छोड़s तूं, काटs दिन अन्हरिए में।।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट

मुखिया जी: उमेश कुमार राय

मोरी मईया जी

डॉ रंजन विकास के फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया - विष्णुदेव तिवारी

डॉ. बलभद्र: साहित्य के प्रवीन अध्येता - विष्णुदेव तिवारी

जा ए भकचोन्हर: डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'