फूल बनके रह गइल: हरेश्वर राय
चुप्पे से आइल पुरवइया, कनवा मे कुछ कह गइल।
परबत बरोबर रहल पतझड़, भरभरा ऊ ढह गइल।।
परबत बरोबर रहल पतझड़, भरभरा ऊ ढह गइल।।
जतना ऊंच खाला रहल ह, हो गईल साफे बरोबर।
ओठ जवन ह रहल झुराईल, फूल बनके रह गइल।।
फुलवरिया के फेंड से कोइलर, लागल तान अलापे।
हरियरिया जलधार बनल, आ खेते बधारे बह गईल।।
तितली रानी तितलीन संगे निकलल सैर सपाटा प।
फूलन के दोकान मे जाके कीनलस आ बेसह गइल।।
मकरंदा पगला आवारा फट फुलवारी में ढुक गइल।
जवने मिलली कली राह में अंकवरिया में गह गइल।।
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