सरस्वती वंदना: हरेश्वर राय

कर जोरि बिनती करीला सुरसती मोरी मईया जी
हे वीणापाणि! होखीं ना सहईया मोरी मईया जी।

अज्ञान के अन्हरवा अंबिका लिखत बा बरबदिया 
सुर-ताल मतिया के माई हो होखत बा दुरगतिया
डूबत बिया नदिया बीचवा नईया मोरी मईया जी।

हम मुरुख अज्ञानी बानी ज्ञान के ज्योति जला दीं
हमरी जेठ जिनिगिया मईया सुंदर फूल खिला दीं
हे माहमाया! परत बानी पईंयां मोरी मईया जी।
 
आरे आंखि अछइत ए अम्बे! भईल बानी आन्हर
भरल बा जिनिगिया में मईया खाली डील- डाबर
दीं ना कुल्हि मरजवन के दवईया मोरी मईया जी।
हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

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