पतझड़ पस्त भइल: हरेश्वर राय
मनवा
मस्त भइल।
मस्त भइल।
पंछिन के जसहीं पांख खुलल
अंबर के लाल कपोल भइल
का जाने के आके छुअलस
पीपरा के पतवा डोल गइल
सुकउआ
अस्त भइल।
कली कली सब गोपी भइली
भंवरा भइल कन्हाई
चोन्हा चोन्हाके चले लगली
रसगागर ले पुरवाई
पतझड़
पस्त भइल।
bahut sandar sir
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