गजल बन गइल: हरेश्वर राय
दरदन के सब समेटनी त गजल बन गइल।
पियास में ओस चटनी त गजल बन गइल।।
पियास में ओस चटनी त गजल बन गइल।।
रुखवन के संग पंछिन के इयारी पुरान।
साख आरी से छंटनी त गजल बन गइल।।
मस्त दुनिया में अपना रही सन मछरी।
हम महाजाल डलनी त गजल बन गइल।।
ढीली दिहले रहीं हम प्यार के पतंग के।
ओके जसहीं लपेटनी त गजल बन गइल।।
केकरो संगवा नदी के बीच पंवरत रहीं।
हांथ से उनुका छूटनी त गजल बन गइल।।
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