जमुऑंव गाँव (थाना- पीरो, जिला- भोजपुर) के लोग बहुते धारमिक सोभाव के ह। जब से हम होस सम्हरले बानी तबे से देखतानी कि एह गाँव में पूजा-पाठ, हरकीरतन आ जग उग के आयोजन लगातार होत आ रहल बा। एह गाँव में साधुजी लोगन के बड़ा बढ़िऑं जमावड़ा भी होखत रहेला। मंदिर आ देवस्थानन से त गाँव भरल परल बा। कालीमाई, बड़की मठिया, छोटकी मठिया, संकरजी, जगसाला, सुरुज मंदिर, सतीदाई, बर्हम बाबा, उमेदी बाबा, गोरेया बाबा, पहाड़ी बाबा--। बात 1975 - 76 के आसपास के होई। बड़का पोखरा से पचीस-तीस डेग पूरब भ एगो भरीत प कइ लोगन के खरिहान रहली सन। कगरी-कगरी आम के फेंड रहन स। ओहिजे एह गाँव के नामी पहलवान बाबा सिसरन पाठक के नाँव से जुड़ल एगो पत्थल के बनल एगो गोल चकरी रहे। ओकरा के देखहिं से लागे जे पाँच अदिमी से कम त एकरा के नाहिएँ उठ पाई। ओह पथलवा के चकरिआ के बीच में एगो भुरुका बनल रहे। ओहमें धरे लायक एगो हैंडल बनल रहे। का जाने बा कि टूट-टाट गइल। साबूत बाँचल होखे त ओकर हिफाजत करे के चाहीं। कही लोग, जे सिसरन बाबा ओकरा के अकेले उठा लेत रहीं। ऊ कतना ताकतवर होइहें, अंदाज लगाईं। हमहुँ अकेला में एक बे कोसिस कइले रहीं कि उठा के देखीं,