सम्यक् के सोच आ सक्रियता - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'



अजीब बा ई सम्यक्!
अलहदा बा एकरा रहे-कहे के ढ़ंग
अभावो में जी लेला उछाह के संग
नाध देला अदोबदो गूंगी
जवना के कह सकिले मौन रहल
ठीक नइखे जवना के चुप्पी कहल
काहे कि
जब-जब बा सम्यक् बोलल
तब-तब हम बानी देखले
एकरा के
अपना मनन जोग विचार के
सदियन से बहिर भइल
कान में घोलल।
परिवार से ठीक
विचार से नीक
सम्यक् का संवाद-सहयोग के
सभे सराहेला।
इहे सोच के
एक बेर हमहीं पूछनीं-
तूं काहे ना लड़ जालऽ
चुनाव परधानी के
ऊ छुटते पूछल-
काहे ला?
सहयोग लिहल, चाहल, सराहल
अलग चीज बा।
बाकिर,
पंचायत का हित के आपन हित जान के
प्रतिनिधि चुने के एकरा तमीज बा?
जहाँ एक-एक जन मतलब में
बना लेले बा मन-मिजाज के गलीज
जेकरा जेहन में नइखे रह गइल
नीक-जबून में फरक करेके तजबीज
आ जे खुद के काहिल बना रहल बा
खैरात खाके।
जेके जाहिल बनावल जा रहल बा
अंजान भासा में जीवन ला अनुपयोगी
इतिहास-भूगोल रटा के।
जहाँ जन सेवक आ प्रतिनिधि बनेला
मारामारी बा।
ओह लोभी लालची अकर्मण्य
जातवादी जमात के प्रतिनिधि
ना बनल हमार लाचारी बा।
प्रतिनिधि ओकरे बनल जा सकेला
जेकर बने में खुद पर गुमान होखे
आ कि जेकरा कुकृत्यन से
अपनो मन झवान होखे।
हम काहे बनव ओकर प्रतिनिधि
जे येन केन प्रकारेन चाहेला
पूरा हो जाव हर नीमन-बाउर
अपेक्षन के सिद्धि।
हम ओकर प्रतिनिधि बनीं ?
जे चाही
कि हम ओकरा हर अवैध कारोबार
पर जनि टोकीं
बल्कि कहीं फँस जाए त ओकरा पक्ष में
थाना से कोर्ट ले आपन प्रभाव झोंकीं
आ ओकरा के सजाफ्ता होखे से रोकीं।
का ओकर प्रतिनिधि बनीं?
जे कर रहल बा अपेक्षा
कि ओकर लरिका बिना पढ़ले
इम्तहान में आ जाव अउवल
अउर हम पैरवी कर हल करत रहीं
ओकर एक-एक बुझउवल।
का हम ओकर प्रतिनिधि बन जाईं?
जेकरा बिना ऑफिस-इस्कूल गइले
मिलत रहे दरमाहा
आ घूस लेत धरइला पर
हमरा पैरवी से ओकर
हर कसूर हो जाए स्वाहा।
का ओकर प्रतिनिधि बनीं?
जे अपने भाई के मार रहल बा हक।
आ भाई के गूम हो गइल होखे अकबक।
आ ई हमरा पैरवी के बदौलत
चले करके छाती उतान
अब इहे कुछ करे के बच गइल श्रीमान्?
का हम ओह ठीकेदार के प्रतिनिधि बनीं?
जेकर बनावल पूल-इस्कूल, नाली-नाला
उद्घाटन का पहिले भा कुछे दिन बाद
भस जाला।
जवना में दब के भा दहा के
लोग बाग मुआवजा का चक्रव्यूह में फंस जाला।
का ओकर प्रतिनिधि बन जाईं?
जे नीचे से ऊपर तक कमीशन
खिआवत-खात
अभिनंदन करावत बा पूजात।
हमरा के फिलहाल माफ करीं।
अब त एह बजबजात बेवस्था में
जइसे-तइसे जीअत
मुँहदेखल बोल बोले वाला
बुद्धिजीवी, कलमकार पत्रकार अउर
ऊपर से बनल ईमानदार लोग के
देख के मन घिना रहल बा।
जी मिचलाता
अदबदा रहल बा।
अबहीं हमरा के सुकरात अस
जन जन के बीच सम्पर्क संवाद बढ़ावे दीं।
लोकतंत्र ह कवन चीज
ई त समुझावे दीं।
ये फुसलावत भरमावत ठगत मायावी
कुबेवस्था से लड़े जोग
एक-एक जन के काबिल बनावें दीं
सम्यक् का
सम्यक् सोच आ सक्रियता के
जमीन पर त आवे दीं।
सम्प्रति: 
डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001

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