बादुर - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
चमगादड़
कबो एह दल में
पुछात रहल
ई बता के
कि हम पाँख फइला के उड़िले
तोहार हईं।
कबो ओह दल में
पूजात रहल
ई जता के
कि हम अंडा ना, बच्चा दीले
तोहार हईं।
भाँज लगा के
अइसहीं लेत रहे मजा।
बाकिर,
ओकर इहे चाल, चरित्र आ चेहरा
दिला दिहल एक दिन सजा।
जब दूनो में भिड़ंत हो गइल
दूनो दल लागल खोजे
ऊ कहाँ गइल?
फेर खुलल जब भेद
जतावहूं के ना मिलल खेद।
नीचे खोजत रहे सिआर
ऊपर आँख फोड़ देवे पर
कउआ रहे तइयार।
सुनऽ ए होसियार,
तब से चमगादड़
पेड़ पर उल्टे टंगाइल बा।
तबो ओकर बान
कहाँ सुधिआइल बा।
आ एही से एकरा ला
रहल बा दिल्ली बहुत दूर।
एही से एकरा के
सभे कहत आइल बा बादुर।
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