एगो छोट रचना : डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
हर देह-दिल-दिमाग घवाहिल बा
मरहम लगावत चल।
हर घर-आंगन थकबकाइल बा
हँसत-हँसावत चल।।
भय वश तूं घर से मत डोल साथी,
दूर से ही सही दू बोल बोल साथी,
एही प्राणवायु ला संसरी टंगाइल बा।
बोलत-बतिआवत चल।।
सगा समाज सरकार सभे भइल नंगा,
नेह के लगावल गाछ भइल फूलभंगा,
संबंध सरोकार संवेदना सब मुरझाइल बा।
फेर से पानी पटावत चल।।
भर के इनार गड़ा गइल समरसेबुल सबका,
काट के ई बर पीपर नीम बनल सभे बड़का,
आज ऑक्सीजन ला प्राण छटपटाइल बा।
वासुदेव बरह्म के लगावत चल।।
करे का फेर में दुनिया के अपना मुट्ठी में,
कहाँ फुर्सत केहू का मिले केहू से छुट्टी में,
अर्थ अरजे में आज मूल्य सब हेराइल बा।
खुद के उसूल पर टिकावत चल।।
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