बिहार आ बिहारी गौरव बोध - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
बिहार भारत के एगो महत्वपूर्ण राज्य ह। एकर प्राचीन इतिहास भारत के अस्मिता गाथा ह। एकरा के बिना जनले ऐतिहासिके ना, पौराणिक आ वैदिक भारत के भी नइखे जानल जा सकत। भारतीय सभ्यता, संस्कृति आ ज्ञान-ग्रंथन का निर्माण, उत्थान आ पहचान के दिसाईं एकर अवदान अतुलनीय बा। वैदिक ऋषि विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य, अगस्त के अलावे बुद्ध, महावीर, गोविंद सिंह आदि के तपोभूमि ई बिहार अपना गौरवशाली सांस्कृतिक, साहित्यिक, राजनीतिक आदि पृष्ठभूमि खातिर जगत प्रसिद्ध रहल बा। बाकिर आज खुद इहाँ के लोग अपना गौरवशाली अतीत से अंजान होके आपन बिहारी पहचान बतावे, जनावे आ जतावे से मुँह चोरावेलें। एकरा खातिर कुछ हद तक राजनीतिक विद्रूपतन से पैदा भइल कुछ एक सांस्कृतिक बोधहीनता, सामाजिक विकृति, शैक्षिक-शैक्षणिक गिरावट आ आर्थिक पिछड़ापन जिम्मेवार बा। अब एह सब समस्यन से उबरे खातिर बिहार का एक-एक व्यक्ति के एकरा गौरवशाली अतीत से परिचित करावे के होई, ताकि सभे अपना ओही बिहारी अस्मिताबोध के सहारे एक बार फेर अपने आप के आ अपना गौरवशाली बिहार के ओही गौरवपथ पर ले जा सके।
ई बात ठीक बा कि गौतम बुद्ध के समय तक एह राज्य भा क्षेत्र के नाम 'बिहार' ना रहे। बाकिर देसे ना, सउँसे दुनिया खातिर एह क्षेत्र के अवदान भारत का कवनो क्षेत्र से अधिका रहे। वैदिक काल के बात छोड़ियो देहल जाए तबो एकर पौराणिक आ ऐतिहासिक काल एतना ना गरिमामय रहल बा कि सुउँसे दुनिया एकरा ओर खींचल चलत आवत रहे।
आज जवना भू-भाग के बिहार कहल जाला ऊ मगध, वैशाली,भर्ग, अंग, अंगुत्तराप, कंजंगल, सुहृद, पुण्ड, सीमांत, अल्लकप्प, पिप्पली कानन आ मिथिला के भू भाग रहे। एकरा में मगध में राजतंत्र रहे त वैशाली में गणतंत्र। भोजपुर के भभुआ आ सासाराम प्रमंडल के दक्खिन-पच्छिम के पहाड़ी भाग 'भर्ग', मुंगेर आ चम्पा मतलब भागलपुर 'अंग', गंगा नदी के उत्तरी किनारा वाला मुंगेर जिला से सहरसा तक के इलाका 'अंगुत्तराप', संथाल परगना के क्षेत्र 'कंजंगल', बांकुड़ा, मेदिनीपुर आ मानभूमि के कुछ भाग सहित हजारीबाग के पूरबी हिस्सा 'सुहृद', पूर्णिया आ दिनाजपुर के पच्छिमी भाग 'पुण्ड्', छोटा नागपुर के जंगली आ दक्खिनी भाग जवन मगध से आजाद रहे आ गंगा के कुछ दक्खिनी हिस्सा 'सीमांत', सारन के दक्खिनी भाग में गंगा के उत्तरी छोर आ मही नदी के पच्छिमी आ सरजुग नदी का पूरब के भाग 'अल्लकप्प', चम्पारन के क्षेत्र 'पिप्पली कानन' आ दरभंगा जिला के उत्तरी भाग आ नेपाल के तराई वाला क्षेत्र 'मिथिला' कहात रहे। वज्जि संघ वर्तमान मुजफ्फरपुर आ सारन का सोनपुर के पूरबी छोर तक फइलल रहे। आज अल्लकप्प के नाम 'अनवल' आ 'कोपा' बा जवन अगल-बगल के दूगो गाँव बा। एह कुल्ह भू भाग में भर्ग मतलब भोजपुर (शाहाबाद) आ सीमांत ( छोटा नागपुर के कुछ भाग ) के छोड़ के प्रायः हर भाग मगध भा वैशाली के अधीन रहे। तब मगध के राजधानी राजगृह रहे।
बिहार के ई कुल्ह भू भाग कबहीं कवनो धइल-धराऊं जीवन दर्शन, पारंपरिक अप्रासंगिक रूढ़िवादी विचारधारा भा बनावटी-देखावटी कर्मकांडीय विधि विधान माने वाला नइखे रहल। आपन स्वतंत्र मत, विचार, दर्शन आ जीवन सिद्धांत गढ़े के आग्रही एह क्षेत्र का मेहनती, ईमानदार आ सिद्धांत पर अडिग रहे वाला जन समुदाय आ राजपरिवार के पच्छिम के वैदिक कर्मकांडी आचार्य आ ब्राह्मण-ग्रंथ 'व्रात्य' कहले बा। एह व्रात्य शब्द के मुख्यार्थ होला- जीवन-व्रत के माने वाला, पालन करे वाला भा धारन करेवाला। बाकिर चुकि एह भू भाग के प्रगतिशील जनता कालगत दोसन से विकृत आ रूढ़ भइल अबेवहारिक-अप्रासंगिक-आडम्बरी वैदिक कर्मकांड के विरोधी रहे एह से इहाँ का लोग के ब्राह्मण-ग्रंथन में निम्न कोटि के, पिछड़ल, असभ्य, पातकी आदि कहल गइल। आज जवना गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर आ कुशीनगर उत्तर प्रदेश के सीमा क्षेत्र में बा ऊ कुल्ह भू भाग एही बिहार का व्रात्य क्षेत्र में आवत रहे।
कालगत प्रभाव से जब कर्म आधारित सामाजिक वर्ण व्यवस्था वंशानुगत आ जन्मगत माने जाए लागल आ भारतीय जीवन में अराजकता के स्थिति पैदा होखे लागल। भारतीय समाज में जन्मगत पारिवारिक मान्य वर्ण बेवस्था के चलते ऊँच-नीच आ छुआछूत के बिमारी पसरे लागल तब एह भू भाग के लोग एह बेवस्था के माने से इंकार करके एह आधुनिक वैदिक कर्मकांडन के विरोध कइल। एह भू भाग में केतने स्वतंत्र विचारक, ज्ञानी, तपस्वी, दार्शनिक, हठयोगी, व्रती पैदा भइलें। कई तरह के मत, पंथ, सम्प्रदाय आदि के उद्भव आ विकास भइल। इहाँ के ऋषि, ज्ञानी, तपस्वी आ वर्ती जन्म आधारित वर्ण बेवस्था, ऊंच-नीच, छुआछूत आ यज्ञकर्म में दिआये वाला पशु-बलि के घोर विरोधी रहलें। ई लोग ज्ञान, व्रत, तप, योग, उपवास, सदाचार आ आत्मशुद्धि पर जोर देत रहे। बुद्ध, महावीर, सरहप्पा, गोरखनाथ, कबीर आदि सभे एही तपस्वी, ज्ञानी, योगी, महात्मा, संत समाज का लड़ी के अनमोल कड़ी रहे लोग। ब्राह्मण ग्रन्थन में एही सब वजह से एह भू-भाग का निवासी के मित्रद्रोही, ब्रह्मघाती, व्यभिचारी, पतित, व्रात्य आदि सब कहल गइल। चूकि एह भू-भाग के जनता कर्म आधारित वर्ण बेवस्था के माने वाला रहे एह से ऊ जन्म आधारित वर्ण भा जाति के ध्यान में ना रख के व्यक्ति के गुन आ कर्म के ध्यान में रख के वैवाहिक संबंध करत रहे। एही से स्मृतियन में क्षत्रिय पुरुष आ ब्राह्मण- कन्या से उत्पन्न भइल संतान के 'सूत', वैश्य पुरुष आ क्षत्रिय-कन्या से उत्पन्न संतान के 'मागध', वैश्य पुरुष आ ब्राह्मण-कन्या से उत्पन्न संतान के 'वैदेह' आदि कहल गइल बा।
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