दू टुम: डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

भोजपुरी के स्वाभाविक सवाद तबे मिल सकेला जब एकरा बोले के लहजा ( टोन ) बुझाई। सुने के लकम हो जाई। लिखे के लूर हो पाई आ पढ़े के सहूर हो जाई। ई सुराघात आ बलाघात से लबदल लयात्मक आ रागात्मक स्वर प्रधान भासा ह। एह कुल्ह में इचको फरक भइल कि भाव के गरक भइल। एकरा ध्वनि प्रकृति, भाव प्रकृति, लिंग बिधान, उपसर्ग, प्रत्यय, परसर्ग, बिभक्ति, संग्या रूप, सर्वनाम, सामासिक बुनावट आ क्रियापद के बनावट सब का गझिन जानकारी के दरकार होला। खड़ी बोली के आधार बना के बोले-सुने आ लिखे-पढ़े वाला मनई ठाँवे चिन्हा जालें।
रामाज्ञा प्रसाद सिंह 'विकल' सन् उनइस सौ छिआसी में ससना (बनियापुर) का एगो मंच से आपन कविता 'अब कहाँ बाटे' पढ़त रहस। जवना के कुछ बानगी रहे -

' फँसल दलदल में दल के दल,
ना दलकल रत्ती भर छाती।
हिला दे दाँत शत्रु के,
जवानी अब कहाँ बाटे।।

एह पर एगो गजलगो टुभुकलें कि जवानी स्त्रीलिंग ह एह से इहाँ होखे के चाहीं - 'जवानी अब कहाँ बीआ।' एह पर हम कहनीं जे महाराज, ई बताईं कि भोजपुरी लोक- बेवहार में 'जवानी चढ़ल बा' बोलल जाला कि 'जवानी चढ़ल बीआ' बोलल जाला। त ऊ कहलें- बोलल त जाला- 'जवानी चढ़ल बा' बाकिर ई गलत प्रयोग बा। एकरा के ठीक करेके चाहीं। एह पर हम कहनीं जे ना। रउरा अपने आप के ठीक करीं। हर भासा के आपन लिंग बिधान होला जवन लोक-बेवहार से तय होला। उर्दू आ खड़ी बोली हिन्दी में 'जवानी' शब्द स्त्रीलिंग ह। बाकिर भोजपुरी के जवानी पुलिंग ह। संभव बा उर्दू भा खड़ी बोली हिन्दी में मेहरारू का सङे मरदो लोग मेहरा के स्त्रैण गुन से भर जात होई लोग बाकिर हमरा भोजपुरी इलाका में मेहरारुओ सब एह उमिर में आके मरद लोग के मरदानापन के कान काट देली। एह से इहाँ ' जवानी' शब्द पुलिंग होई। भोजपुरी मैस्कुलिन लैंग्वेज ह। बाकिर एकर मतलब ई नइखे कि एकरा में स्त्रीवाची शब्द हइले नइखे। बा, बाकिर प्रधानता पुरुषवाचिए शब्द के बा।

ओइसहीं कोरोना काल में एगो गायिका का गीत के आखिरी बोल रहे - कोरोनवा महामार हो गइल। जब हम लिखनीं जे भोजपुरी में महामार कवनो शब्दे नइखे। महामारी कर द त ऊ हमरे के समझावे लगली। ई सब सेहिते पहिलके डेग धराई में मिलल बेसम्हार लोकप्रियता के कमाल बा। अइसहूं एने सोसल मीडिया में केहू कुछुओ बोले भा लिखे, दस-बीस आदमी अंगूठा टिपिए नछ दी चाहे वाह, खूब, बेजोड़, बेमिसाल, अप्रतिम लिखिए नू दी। खैर, फिलहाल एगो चीज आउर धड़ल्ले से हो रहल बा जे लिखे-बोले वाला लोग का भोजपुरी के आपन शब्द भदेस लागऽता त ऊ लोग ओकरा बदले खड़ी बोली हिन्दी भा उर्दू भा अंगरेजी के शब्द लिख-बोल के वाक्य के पूरा करे खातिर क्रियापद भोजपुरी के टांक देलन। बाकिर एने एगो नामचीन सधल साहित्यकार एकरा उल्ट अपना एगो गीत में करे खातिर त भोजपुरी के निछक्का शब्दन के बेवहार कइले बाड़न। बाकिर टेक के रूप में खड़ी बोली हिन्दी में लागे वाला क्रिया रूप के बेवहार करत नजर आवत बाड़न। जवना पर हम बड़ी विनम्रता से माफी माँगत लिख रहल बानी। जइसे उनकर क्रिया रूप बा- जगमगाये, याद आये, जराये, तराये, सुनाये आ उड़ाये। भोजपुरी का भाव प्रकृति के अनुसार होखे के चाहीं- जगमगावे, इयाद आवे, जरावे, उतरावे, सुनावे आ उड़ावे। जइसहीं जगमगाये, उतराये, सुनाये आदि लिखाई भा बोलल जाई कि ओकरा सङे लगावे के पड़ी - 'लागल' शब्द। जगमगाये लागल, उतराये लागल, सुनाये लागल आदि।

अइसहीं लोग लिखे-बोले में क्रियापद के उदाहरण खातिर भोजपुरी में शब्द बोलेला- खाना। भोजपुरी में क्रिया के शब्द 'ना' के जगे 'इल' भा 'अल' लागेला। जवना से शब्द बनेला- खाइल, आइल, गइल, भइल, उठल, बइठल, सुतल, आवल, बतावल, नहवावल सुनावल, सुनाइल आदि। आना, गया, हुआ, उठा, बैठा, सोना , सोया हुआ, आना, बताना, नहवाना, सुनाना, सुना हुआ आदि के प्रयोग भोजपुरी खातिर गलत प्रयोग बा।
सम्प्रति:
डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001

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