भाषा-पहचान के मूल भाषिक तत्व- डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
कवनो भाषा का स्वरूप के बतावे वाला चार गो प्रमुख भाषिक तत्व होलें - सर्वनाम, क्रिया-पद, प्रत्यय-विभक्ति आ अव्यय। कवनो व्यक्ति, समाज भा भाषा के सम्पर्क में आके केहू के भाषा प्रभावित हो सकेले। बाकिर एह चारो भाषिक तत्वन के ना अपना सके। कवनो भाषा अपना सर्वनाम आ क्रिया-पद के छोड़ के दोसरा भाषा के सर्वनाम आ क्रिया-पद ना ले सके। संज्ञा आ विशेषण के लेन-देन आम बात होला। शर्ट, पैंट, कोट, टाई, स्वेटर, कम्प्यूटर आदि भोजपुरी जाति-भाषा के आविष्कार ना ह त ई भोजपुरी अंगरेजी भा दोसरा यूरोपीय भाषा से एह सब के संज्ञा के रूप में ले ली। ओइसहीं साड़ी, धोती, धर्म, दर्शन, अध्यात्म आदि शब्द इंग्लिश जाति-भाषा के आविष्कार ना ह त उहो ले ली। बाकिर एकरा से भाषा ना बदली।
भोजपुरी अंगरेजी से क्रिया-पद कम, गो, इट, ड्रिंक आदि ना ले सके आ अंगरेजियो भोजपुरी से खा, जा, उठ, बइठ, सुत, पढ़, जो, आव आदि ना ले सके। खड़ी बोली हिन्दी के सहायक क्रिया है, हैं, था, थे, थी, थीं आदि भोजपुरी ना लगा सके आ भोजपुरी के क्रिया-पद बा, बाटे, बड़ुए, बाटी, बाड़ी, बानी, हईं, हवी, हउवे आदि के खड़ी बोली हिन्दी ना अपना सके। भोजपुरी के नकारात्मक बोधी क्रिया-पद 'नइखे' हिन्दी में ना चल सके। भोजपुरी के सर्वनाम जे, जेह, से, सेह, हिनकर, हुनकर, जेकर, सेकर, एकर, ओकर, होकर, राउर, केकर आदि हिन्दी में प्रयुक्त ना हो सके आ हिन्दी के सर्वनाम तुम, तुम दोनों, तुम सभी, वह, यह, उसका, इसका, किसका, आपका, मेरा आदि के भोजपुरी ना अपना सके। जदि एह दूनों में रूप समान नजर आई त एकर माने ई बा कि ई दूनों एक भाषा ना होके एक भाषा-परिवार के भाषा ह।
क्रिया-भेद से भाषा-भेद जानल जाला। संज्ञा-भेद से भाषा-भेद ना होखे; जइसे - 'राम गोज' वाक्य में 'राम' शब्द संज्ञा हिन्दी भा भोजपुरी के बा आ 'गोज' शब्द इंग्लिश के बा एह से क्रिया-पद का चलते ई वाक्य इंग्लिश के बा। 'राम जाता है' वाक्य में जाता है क्रिया खड़ी बोली हिन्दी के बा एह से ई वाक्य हिन्दी के बा आ ओइसहीं 'राम जाता चाहे राम जात बाड़न' वाक्य में जाता आ जात बाड़न क्रिया-पद के चलते ई वाक्य भोजपुरी के बा। 'महात्मा गाँधीज सत्याग्रह' में 'ज' सम्बन्ध-प्रत्यय के चलते ई इंग्लिश के भाषा बा। 'महात्मा गाँधी का सत्याग्रह' में 'का' सम्बन्ध-प्रत्यय भा परसर्ग के चलते ई हिन्दी भाषा के उदाहरण बा। उहँवे 'महात्मा गाँधी के सत्याग्रह' में 'के' सम्बन्ध-प्रत्यय-विभक्ति भा परसर्ग के चलते ई वाक्य भोजपुरी के बा। 'यू गो' में यू सर्वनाम आ गो क्रिया-पद इंग्लिश भाषा के बोध करावऽता। एकरा हिन्दी में यू जाता है चाहे तुम गो दूनो ना हो सके। 'यदि' स्वतंत्र अव्यय संस्कृत से हिन्दी में आइल बा। एकर मतलब ई ना भइल कि संस्कृत आ हिन्दी एके भाषा ह। एकर मतलब कि ई दूनो भाषा एके जातीय भाषा-परिवार के ह। 'जो' अर्थ वाला एह 'यदि' अव्यय खातिर भोजपुरी में जदि, जो, जाहु आदि अव्यय चलेला; जो राउर अनुसासन पाऊँ, जाहु हम जनतीं अइहें रामजी पहुनवाँ, से बिहने सबेरे घरवा जइतीं हो लाल।'
कहे के अभिप्राय ई बा कि जब कवनो भाषा दोसरा भाषा से प्रभावित होले तबो ऊ आपन स्वरूप समाप्त ना करे। कुछ संज्ञा-पद आ कबो कबो कुछ क्रिया-पद आ सर्वनामो आदि अइसहीं घुणाक्षर-न्याय से केतने भाषा सब में मिलत-जुलत बन जाला। तबो ओह सबके एक परिवार के भाषा तबले ना मानल जाए जबले अधिकाधिक संख्या में ओइसन शब्दन के मिलत-जुलत रूप ना मिल जाए।
ऊपर का वाक्यन में आइल शब्द 'तबो' खातिर हिन्दी में 'तब भी', 'तबले' खातिर ' तब तक' , 'जबले' खातिर 'जब तक', 'ओइसन' खातिर 'वैसे', 'मिलत-जुलत' खातिर 'मिलता-जुलता' शब्द चलेला। कबीर, रैदास तुलसी,धरनी आदि के चलवाही दोसरो-दोसरो भाषा-भाषी ले रहे। ऊ लोग अपना भाषा के प्रभाव में लेके एह लोग का बानियन के लिखल। बाकिर एही सर्वनाम, क्रिया-पद, प्रत्यय-विभक्ति आ अव्यय के आधार पर ओह लोग का भाषा के पहचान कइल जाला। अइसे अनुवाद करे का क्रम में इहो मूल-तत्व प्रभावित हो गइल बा।
कवनो दू भाषा में एह भाषिक तत्वन में अधिकाधिक मेल मिले लागे त समुझीं कि ई दूनो भाषा एके भाषा-परिवार से विकसित भइल बा। जइसे ऋग्वेद आ अवेस्ता के भाषा। काहे कि ई दूनो प्राचीन आर्य लोग के भाषा से छिनगल बा। भाषा के काम जोड़ल ह। अपना देश में बहुत भाषा बोलल जाला। बाकिर सब एके जातीय भाषा संस्कृत से बन्हाइल बा। संस्कृत हर भारतीय के एक जाति में समेट के रखले बा। उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम, वैदिक, अवैदिक, क्षत्रिय, ब्राह्मण, महार, बौद्ध, जैन, सिख आदि के नाम रामकृष्ण, गोपाल, अमृत, नवजोत, अमरेन्द्र, सुशीला, गायत्री आदि बा। हजारन पंथ, वर्ग आ भाषा के होइयो के सबके ई महाजातीय भाषा 'संस्कृत' एक बना के रखले बा। इहाँ तनिका केहू अपना संतान के नाम तैमूर, सद्दाम, गजनी, रोबर्ट आदि राखेला कि हल्ला होखे लागेला कि ई भारतीय जाति ना हो सके। अइसहीं चीन-जापान के बौद्ध धर्मावलंबी भइला के बावजूद जदि उहाँ केहू भारतीय भाषा के नाम रख लेवे त राष्ट्रद्रोही घोषित हो जाई। आचार्य किशोरी दास वाजपेई जी अपना 'भारतीय भाषाविज्ञान' में एह विषय पर विस्तार से विचार कइले बाड़न।
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