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घाघ आ उनकर कहाउत (01) - उमेश कुमार राय

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घाघ भोजपुरी के उ फूल रहन जेकर सुगंध अकबर के दिल्ली दरबार ले महकत रहल  आ जिनका बुद्धि-कौशल पर अकबर भी  मोहीत रहलन। पंo राम नरेश त्रिपाठी जी आपन किताब घाघ और भड्डरी   (हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयाग, सन् 1949) के पृष्ठ संख्या 17 से 22 तक में ईनकर जन्म छपरा बता के जन्म स्थान के विवाद खतम कईनी। इनकर जन्म सन् 1753 में भईल रहे ।  एकर पुष्टि  मुहम्मद मूनिस के मतानुसार कईले बानी।  अकबर खुश होके  घाघ के  'चौधरी' के उपाधि देले ।  ऊ उनका के  कईगो गाँवो  देले रहन जे कन्नौज में 'अकबराबाद सराय घाघ' आ 'चौधरी  सराय' के नाम से जानल जाला। घाघ आपन जिनगी के शेष जीवन ईहवे बितवले रहनी।  घाघ के दोहा, लोकोक्ति आ कहाउत के खूबहीं लोकप्रियता मिलल ।  खेती-बारी, रितुकाल, लगन मुहूर्त आ नीति संबंधी उपदेश ढेर मसहूर भइल। ओह समय के किसान लोग इनकर कहावत याद रखत रहे लोग जवन समय पर काम आवत रहे। ओकर कुछ अंश के प्रस्तुत करत बानी ।  ई रउआ सभे के बढिया लागी: नसकट पनही बतकट जोय । जो पहिलौंठी बिटिया होय ।। पातर खेत, बौरहा भाय । घाघ कहें दुख कहाँ समाय ।। टिपनी: घाघ के कहनाम बा कि गोड़ के नस काटेवाली जू

भोजपुरी: उमेश कुमार राय

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भोजपुरी के गहिरान के थाह लगावल सबके बस के बात नइखे। ई पुरान चाउर ह। ई भसन के रानी ह। समूचे संसार में एकरा मिठास के कवनों जोड़ नइखे। सात समुन्दर पार तक एकर साम्राज कायम बा। एकरा लगे शब्द के अकूत भंडार बा। एकरा सटीकता के त कवनों जबाबे नइखे। एकर गहिरान थाहे के होखे त कवनो विषय प बिचार बिमर्श क के देख लीं। आईं एगो छोट उधारन लेल जाव। गाय। गाय के अलग-अलग रुप-रंग आ अवस्था खातिर जवना शब्दन के प्रयोग कइल जाला, एकर बानगी देखल जाव। गाय के लाली, धवरी, गोली, पिअरी, कजरी, सॅवरी, टिकरी, सिंगहरी आदि नाम से जानल आ पहचानल जाला। गाय गर्भाधान के पहिले तक बाछी भा बछरु कहाले। गर्भाधान के बाद गाभिन कहाले। जब बाछी सांढ़ के भिरी ले जाए लायक हो जाले त ओह अवस्था के कलोर कहल जाला। अउर गर्भाधान के प्रक्रिया के बरदाईल कहल जाला। गर्भाधान के बाद जब गाय के थान में वृधि महसूस होखे लागेला त एकरा के कवरावल कहल जाला। गाय बिआले त धेनु हो जाले। बच्चा बड़ा होखे तक दूध देत रहेले त बकेन कहाले। गाय जब दूध देल बन्द कर देले त बिसुखी चाहे नाठा कहाले। पहिली बिआन के गाय के अंकरे कहल जाला। बच्चा समय से पहिले देला पर लड़ाई

हमार गाँव: उमेश कुमार राय

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भईया हो! हिन्दवा बसे मोरे गाँव, ईहवाँ के पुरनियाँ के बा खूबे नाँव। पढ़ाई-लिखाई में केहू ना थहलस, पहिलका एमएस-सी शाहाबाद के दीहलस, डाकडर-फरफेसर आ कमीशनर- डी एम, ईनजीनियर आ मास्टर से पटल बा गाँव। एमएलए - परिषद आ कवि-लेखक, परसिध अर्थशासतरी आ विज्ञानिक, गायक - उदघोषक आ सुनर बादक , बुद्धिजीवियों में बा एहिजा के नाँव। शिवाला-यज्ञशाला अउर पाठशाला, काली माई-शीतला माई आ गाँव-डीहवार, बरह्म बाबा-सोखा बाबा आ सूरूज दरबार, सती माई बसेली सीतल पकड़िया छाँव। बैंक-डाकघर आउर पुस्तकालय, नाहर-पईन आ आहर-पोखरा के पाट, बाग-बगईचा अउर छठिया घाट, हमनी के आन-बान-शान जमुआँव। सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट - जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

बबुआ: उमेश कुमार राय

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ई तS हमार करेजवा के टुकड़ा हवन अँखिया के पुतरी आ कुलवा के चिराग हवन। ई तS हमार जिनगी के आस हवन हमार परान आ बुढ़ापा के लाठी हवन । मेहरी खिसियाले तS कले-कले पोटियावेलन हम समुझाईं तS दउर-दउर डठियावेलन । सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट - जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

अवकातन क बात: उमेश कुमार राय

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रउआ हीरनी सुखन की नगरी, हमरा पर दुखन क विसात। हमार जनम संघर्ष खातिर ह, ई त हमरी अवकातन क बात। हर खोरियन में दीख रहल बा, तोहरी-हमरी मनवाँ क अवकात। तोहरी दिया आकाश जरत बा, हमरी घोर आफत क बरसात। हमरी खेतिया सुख रहल बा, नाहीं रहल डिजल क अवकात। तोहरी गड़िया उड़ रहल बा, नाहीं डिजल क कुछ विसात। तोहरी आँगन क पोखरा शान बा, रात-दिन हंस थाहत हैसियत। हमनी क पोखरा सूख रहल बा, नाहीं परबंधन क अवकात । तोहर बबुअवा एसी असकूल में बा, जहवाँ सुविधन क होत बरसात। हमरो बबुअवा क सरकारी असकूल बा, जहवाँ खैराती सुविधन क बरसात। सम्प्रति:  उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना पिरो,  जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

देशवा के सिपहिया: उमेश कुमार राय

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गाँव-जवार माई- मेहरिया बाबू-काका हीत-नाता माई हो सब छुटल याद आवेला का करीं सीमवा पर दुश्मन जोर मारेला। बुचिया के किलकारी माई के सनेहिया लुगाई के पिरितिया भईया के नेहिया माई हो सब छुटल याद आवेला का करीं सीमवा पर दुश्मन जोर मारेला। संघतिया के सलहिया, बाबू के कहलिया, गउआँ के खोरिया, काकी के बतिया , माई हो सब छुटल याद आवेला का करीं सीमवा पर दुश्मन जोर मारेला। होली के रंगवा, दिवाली के दियावा, दशहरा के मेलावा, छठ के दउरवा, माई हो सब छुटल याद आवेला का करीं सीमवा पर दुश्मन जोर मारेला। भौजी के मजकिया, साली के ठिठोलिया, गुरूजी के छड़िय , दादा के टहलिया, माई हो सब छुटल याद आवेला का करीं सीमवा पर दुश्मन जोर मारेला। बुट के होरहवा, ऊखिया के चोरिया, आइस-बाईस, लुका-छीपिया , माई हो सब छुटल याद आवेला का करीं सीमवा पर दुश्मन जोर मारेला। सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट - जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

लतखोर: उमेश कुमार राय

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मारS बड़नी, चाहे लुकार, धीरे सुहूराव, चाहे पुचकार, ई लतखोर हवन ना मनिहें। अनकरे में डूबेलन, अनकरे के बूझेलन, सझुरावल के अझुरावेलन, बुझल के धधकावेलन, ई लतखोर हवन ना मनिहें। गलत कहस, चाहे सही, बात ईनकरे रही, सब बात जानेलन, बाकी पने खूंटा गाड़ेलन। ई लतखोर हवन ना मनिहें। बात चलावे के, बात फेरे के, बात मिलावे के, अउर बात टेरे के, सभे इनका से सीखेलन, ई लतखोर हवन ना मनिहें। सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट - जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

के करी: उमेश कुमार राय

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देशवा में छाई अंधियारी, तब दिवाली के लेआई। जब नेताजी करिहे जुगाली, तब संसद के चलाई। जब पंडाजी ना बनिहे पूजाड़ी, तब मंदिर के घंटा के डोलाई। जब माहटरे करिहे मनमानी, तब लड़ीकन के के पढ़ाई। जब किसाने रहीहे धरना पर, तब खेतिया के कराई। जब मुखियेजी करिहे घोटाला, तब गलिया के बनाई। जब सिपाहिये करिहे चोरिया, तब चोरवा कईसे पकड़ाई। जब जजे साहेब घूसवा खईहें, तब निर्दोषवा के के बचाई। सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट - जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

ई त जुगाड़ ह: उमेश कुमार राय

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भईया हो ई त एहघरी के जुगाड़ ह, झूठे के राई के बड़का पहाड़ ह। अझुराईल काम त, निमन-चिकन बतियावे के। सझुराईल काम त, भर-पेट लतियावे के। छाँह कबो ना आई ई त ताड़ ह। भईया हो ई त एहघरी के जुगाड़ ह , झूठे के राई के बड़का पहाड़ ह। बुझारत मे पूछ खातिर त, अपनों से अपना के झुरावे के। छुरी चलावे खातिर त, मधुर मुस्की दिखावे के। ई ना बुझी भरल धूरतई के भाड़ ह। भईया हो ई त एहघरी के जुगाड़ ह , झूठे के राई के बड़का पहाड़ ह। बनल सरकार के, छनही में गिरावे के। गिरल सरकार के, छनही में बनावे के, ईनकरा लगे भर दउरी जुगाड़ ह। भईया हो ई त एहघरी के जुगाड़ ह , झूठे के राई के बड़का पहाड़ ह। अपने हेठे बाड़ त, अनकरो के हेठिया देल। केहु के ना बियहे देल, सबकर ईजतियो के डठिया देल। खुबे ई फटकाराला हेहर बाड़ ह। भईया हो ई त एहघरी के जुगाड़ ह , झूठे के राई के बड़का पहाड़ ह। सम्प्रति: उमेश कुमार राय  ग्राम+ पोस्ट जमुआँव  थाना - पीरो, जिला - भोजपुर, आरा

डुगुरs हो काग: उमेश कुमार राय

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डुगुरs हो मोरो बँड़ेरी काग कब जगिहें सुतल मोर भाग कबले हमहूँ काटबि चानी कि असही पझाई जिनिगी के आग डुगुरs हो मोरो बँड़ेरी काग। कहिए से ढबओ त ढहल बा छान्ही के खपड़ो त उखड़ल पड़ल बा जब-जब बुनी के पानी परेला बीचे घर में ओरियानी बनेला छतर कढ़ले बा जिनिगी के नाग डुगुरs हो मोरो बँड़ेरी काग। भाग से लागल नोकरी छोड़इलस सऊँसे  थाती करोनवा खइलस अड़ोसी-पड़ोसी सबे मउरइलन जिनिगी के गाड़ी कइसे घींचइहन जिअरा अउंजाइल सुखाइल पराग डुगुरs हो मोरो बँड़ेरी काग। दुखवा हमनी प बा अगराइल फिकिरे पियवा बाड़न सुखाइल बमकल महंगाई नाहीं रासन किनाइल बबुआ-बुचिया के आसरा पझाइल नेतवा मनावे देखs रोजे-रोज फाग डुगुरs हो मोरो बँड़ेरी काग। सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट - जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

त बात बनी: उमेश कुमार राय

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मटिया साथे मन के दियरा जलाइब त बात बनी राजा साथे रंको के मिठाई बँटवाइब त बात बनी जतना चुल्हिया उपास होखसु ओकरा के जलाईं उठल त केेेेहु उठा दी गिरल उठाइब त बात बनी। सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट - जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

दुल्हा: उमेश कुमार राय

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माई रे! बाबू के समझा दे बिअहिएं तनी छान-बीन के टिकाउ- सोझबक आ पढ़लके दुल्हा किनीहें तनी खोज-बीन के । गंजेड़ी- भंगेड़ी नाहीं पियक्कड़ लफूआ-लफंगा नाहीं घुमक्कड़ हुनर-गुनर आ अकिलदार-धाकड़ तनी खोजिहेें सोच-समझ के माई रे! बाबू के समझा दे बिअहिएं तनी छान-बीन के सुंदर-सुभेख ना होई त चली धन-सम्पत्ति बिना भी ना टली नोकरी-चाकरी के चक्कर टालि के ना त लुटा जईहें बिना हरे-फिटकिरी के माई रे! बाबू के समझा दे बिअहिएं तनी छान-बीन के सांवर-गोर के फेरा में नाहीं रहीहन, घर-दुआर आ कूलो -खानदान थहीहन बिधना के लिखल प विश्वासो करीहन हमारा मोह में आपन औकात ना छोड़ीहन माई रे! बाबू के समझा दे बिअहिएं तनी छान-बीन के सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट - जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

अन्हार होई त: उमेश कुमार राय

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अन्हरिया होई त दियवा जरावहीं के परी घोटाला होई त हालावा करावहीं के परी, कतनों जोर लगा के महटियाईब बाकिर दुअरवा बसाई त कचड़ा हटावहींं के परी। सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट - जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

गउआँ की ओर - उमेश कुमार राय

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मनवा रे! चल  गउआँ  की ओर। जहवाँ बा सादगी चहु ओर।। ना बा कहवों हल्लागुल्ला, नाहीं करखानवा के शोर। ना बा  कहवों  धूआँधुकूर, नाहीं  गड़ियन के बा शोर। जहवाँ   ना भीड़भाड़ के जोर। मनवा रे! चल गउआँ की ओर। बाग-बगईचा ताल-तलईया , अउर चिरईंयन के मधुर शोर। सिंदुरी लिहले भोरे किरिनिया, देख के होला मनवा विभोर। शहर बेगाना बा  गउआँ  चितचोर। मनवा रे! चल गउआँ की ओर। एकर गहना हरियाली बा, नयना आहर-पोखर के छोर। बिंदी त गाँव के गरिमा बा, पेड़-रुख एकर नवल किशोर। एकर  गोदिया भईनी आत्मविभोर। मनवा रे! चल गउआँ की ओर। एकर आँगनवा खेल मैदानवा बा, विद्यालय ह एकर अकिल बेजोड़। पड़ोसी एकर जवारन के घर बा, गउआँ  के लोग परिवार बेजोड़। अगराई पकड़s एकर आँचर के कोर। मनवा रे! चल गउआँ की ओर। सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट -  जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)