भोजपुरी: उमेश कुमार राय
भोजपुरी के गहिरान के थाह लगावल सबके बस के बात नइखे। ई पुरान चाउर ह। ई भसन के रानी ह। समूचे संसार में एकरा मिठास के कवनों जोड़ नइखे। सात समुन्दर पार तक एकर साम्राज कायम बा। एकरा लगे शब्द के अकूत भंडार बा। एकरा सटीकता के त कवनों जबाबे नइखे। एकर गहिरान थाहे के होखे त कवनो विषय प बिचार बिमर्श क के देख लीं। आईं एगो छोट उधारन लेल जाव। गाय। गाय के अलग-अलग रुप-रंग आ अवस्था खातिर जवना शब्दन के प्रयोग कइल जाला, एकर बानगी देखल जाव। गाय के लाली, धवरी, गोली, पिअरी, कजरी, सॅवरी, टिकरी, सिंगहरी आदि नाम से जानल आ पहचानल जाला। गाय गर्भाधान के पहिले तक बाछी भा बछरु कहाले। गर्भाधान के बाद गाभिन कहाले। जब बाछी सांढ़ के भिरी ले जाए लायक हो जाले त ओह अवस्था के कलोर कहल जाला। अउर गर्भाधान के प्रक्रिया के बरदाईल कहल जाला। गर्भाधान के बाद जब गाय के थान में वृधि महसूस होखे लागेला त एकरा के कवरावल कहल जाला। गाय बिआले त धेनु हो जाले। बच्चा बड़ा होखे तक दूध देत रहेले त बकेन कहाले। गाय जब दूध देल बन्द कर देले त बिसुखी चाहे नाठा कहाले। पहिली बिआन के गाय के अंकरे कहल जाला। बच्चा समय से पहिले देला पर लड़ाईल कहल जाला। जवान गाय ना बाहे ना बिआय ऊ बाहिल कहाले। दूध दुहत खानी जवन गाय लात चलावे ओकरा के हरही कहल जाला।
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