डुगुरs हो काग: उमेश कुमार राय

डुगुरs हो मोरो बँड़ेरी काग
कब जगिहें सुतल मोर भाग
कबले हमहूँ काटबि चानी
कि असही पझाई जिनिगी के आग
डुगुरs हो मोरो बँड़ेरी काग।

कहिए से ढबओ त ढहल बा
छान्ही के खपड़ो त उखड़ल पड़ल बा
जब-जब बुनी के पानी परेला
बीचे घर में ओरियानी बनेला
छतर कढ़ले बा जिनिगी के नाग
डुगुरs हो मोरो बँड़ेरी काग।

भाग से लागल नोकरी छोड़इलस
सऊँसे  थाती करोनवा खइलस
अड़ोसी-पड़ोसी सबे मउरइलन
जिनिगी के गाड़ी कइसे घींचइहन
जिअरा अउंजाइल सुखाइल पराग
डुगुरs हो मोरो बँड़ेरी काग।

दुखवा हमनी प बा अगराइल
फिकिरे पियवा बाड़न सुखाइल
बमकल महंगाई नाहीं रासन किनाइल
बबुआ-बुचिया के आसरा पझाइल
नेतवा मनावे देखs रोजे-रोज फाग
डुगुरs हो मोरो बँड़ेरी काग।
सम्प्रति:
उमेश कुमार राय
ग्राम+पोस्ट - जमुआँव
थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

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