भड्डरी आ उनकर कहाउत (1): उमेश कुमार राय
भड्डरी एगो ढेर पहिले के ज्योतिषी आ विद्वान रहन जेकरा विषय में बहुते विद्वान लोग सोध कईल बाकी ओह लोगन के विचार एक ना भईल। केहु पुरुष मानल त केहु स्त्री। भड्डरी आ भड्डली के केहु अलग-अलग मानल त केहु एकही आदमी के दुगो नाँव मानल। भड्डरी के जीवनी पर भी ढेर विवाद विद्वान लोगन में रहल बा। पं0 राम नरेश त्रिपाठी के लिखल किताब "घाघ और भड्डरी" में भड्डरी के जीवनी बा कि:
गाँव में एगो कहानी परचलित रहे कि काशी में एगो ज्योतिषी रहत रहन। इनकरा गणना में एगो शुभ साइत आवे वाला रहे जवना में गर्भाधान भईला पर यशस्वी अउर विद्वान संतान के जनम होई। ज्योतिषीजी एगो गुणवान संतान के लालसा में काशी से अपना घर खातिर चल देलन। घर काशी से दूर रहे। ठीक समय प घर ना पहुँच पवलन। राहे में सांझ हो गईल तब एगो अहीर के घर रूकलन। अहीर कन्या खाना बनावे लगली।ज्योतिषीजी के उदास देख के कारन पुछली। एने-ओने के बात कईला के बाद ज्योतिषीजी असली बात बता देलन। अहीरिन भी एह शुभ साइत के फयदा उठावे के फेरा में लाग गईली आ उ सफल भईली। ज्योतिषीजी से उनकरा भड्डरी के जनम भईल। भड्डरी बहुत भारी ज्योतिषी भईलन।
पं0 रामनरेश त्रिपाठी जी के मुताबिक श्री बी0 एन0 मेहता, आइ0 सी0 एस0 एह कहानी के अलग ढंग से कहले बानी।मेहता जी के अनुसार ज्योतिषाचार्य बाराहमिहिर एक हाली तीर्थ यात्रा में रहन। यात्रा में मालुम चलल कि अगला दिन के पैदा होखल संतान गणित अउर ज्योतिष के बड़ा पंडित होई। बाराहमिहिर के मन में अईसन संतान के लालसा जागल। उहाँके अपना घर उज्जैन चल देनी। शुभ साइत में घर ना पहुँच पवनी तब रास्ता में एगो गाँव के गड़ेरिन से बिआह कईनी जेकरा से संतान भइल। जे अनपढ़ के बाद भी बड़हन ज्योतिषी भइलन।नक्षत्र वाला कहाउत के कहे वाला भड्डरी चाहे भड्डली के जनम भईल।
पंडित कपिलेश्वर झा भी कहले बानी कि भड्डरी अहीरिन के गर्भ से जनम लेले बाड़न आ इहो बिहार में प्रसिद्ध बा कि डाक, घाघ, खोना आ भाड़ ज्योतिषाचार्य बाराहमिहिर के ही लड़ीका रहन लोग। लेकिन भाषा पर विचार कईल जाय त अईसन ना हो सकेला काहे कि बाराहमिहिर के समय (दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह के शोध-पत्र सन् 1952 के अनुसार) पंचसिद्धान्तिका के अनुसार शक् 427 या सन् 505 ई. के लगभग पड़ेला। ओह समय के ई भाषा ना हो सकेला जवन भड्डरी आ घाघ के कहाउतन में व्यवहृत बा।
कातिक सुदी एकादशी, बादल बिजुली होय।
तो आसाढ में भड्डरी, बारखा चोखी होय।।
मतलब-- कार्तिक शुक्ला एकादशी के दिन अगर बादल होखे अउर बिजुरी चमके तब भड्डरी के अनुसार आषाढ़ में जरुर बरखा होई।
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