बाकुड़ों की बलिदानी: उमेश कुमार राय
ठंडा खुनवा भी छनहीं में उबली-गरमाई।
सुतल गुमान छनही में अउजाई-अकुलाई।
फाँसी-गोली अब रउरा नजरी प नचिहे,
भगत-आजाद के जसहीं याद झीमीलाई।
हाहाकार अउर भगदड़ शत्रुदल में भईलन।
जब टाप के सुर तेगा-तलवार से मिललन।
गंगा माई कटल बांह बाकुड़ा के थाम लेली,
कुंवर सिंह तब आजादी साथ नाम जुड़लन
खोरिया में लोगन के बतकुचन अगराईल ।
बतिया के छिंउकी से खुशी हकाईल।
नयका सबेरवा जयहिन्द से गुंजे लागल ,
हाथ में तिरंगा जयघोष साथे सवाराईल ।
लक्ष्मी,नाना, सुभाष के लोगवा बिसारल।
संघर्ष काल की कृति आजादी बाद बगादल
महल-अटारी से ऊँचा आपन शान करके,
ईमान,रीति,नीति के छनिक लोभे हेरावल।
अकिल के नकल प बा सभे केहु अझुराईल।
सत्य-अहिंसा सब नेताजी लोग भुलाईल।
अंजू-पंजू मिल देश के खिल्ली उड़ावस।
देख राजघाट से गाँधीजी के मती हेराईल।
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