भोजपुरी आलोचना के कुछ करिया पक्ष: विष्णुदेव तिवारी
(क) लापारवाही भा जानकारी के अभाव:-
भोजपुरी आलोचना के क्षेत्र में कुछ प्रशंसितो लोग अपना काम के महत्व के ना समुझत, या त लापारवाही से भा जानकारी के अभाव से अइसन बात कह देत बा, जे सरासर ग़लत भा संदेहास्पद बा। कृष्णानंद कृष्ण अपना चर्चित आलोचना पुस्तक "भोजपुरी कहानी: विकास आ परंपरा" में कुछ अइसने लापारवाही करत लिखत बाड़े कि भोजपुरी कहानी के विकास में महापंडित राहुल सांकृत्यायन के बहुत योगदान बा।(पृ.19 के पहिलका पैराग्राफ/पहिला संस्करण/1976)
स्मरणीय बा कि राहुल सांकृत्यायन भोजपुरी भाषा में आठ गो नाटक- 'मेहरारुन के दुरदसा', 'जोंक', 'नयकी दुनिया', 'जपनिया राछछ', 'ढुनमुन नेता', देस रक्षक', 'जरमनवा के हार निहचय' आ 'ई हमार लड़ाई' लिखले। इहँवा उनकरा कुछ अन्य बातन-वक्तव्यनो के प्रमाण मिलेला बाकिर 'ऊ कहानियो लिखले बाड़े', एह बात के पता त' खाली कृष्णेनन्द के बा।
आलोचना के एह क़िताब में, कहानियन के विषयो-वस्तु के ले के कृष्णानंद जी से कहीं-कहीं भूल हो गइल बा। जइसे, अवध बिहारी सुमन के कहानी 'मलिकार' के बारे में जवन ऊ पृष्ठ सं-19 में लिखत बाड़े कि- "एकरा जरिये समाज में कोढ़ जइसन फइलल लरछुत बेमारी 'तिलक-दहेज' के प्रथा के चित्र बड़ा बेरहमी से उरेहल गइल बा।"- से कहानी के केन्द्रीय वस्तु ना ह। केन्द्रीय वस्तु देवकी आ सेवक नाँव के दू भाइयन के कथा ह। देवकी, सेवक के मए जमीन-जयदाद हड़पि लेत बाड़े। सेवक के भोजन बिना बाया-बाया छछन जात बा आ ऊ अंत में कलपत-कलपत एह असार संसार से मुक्ति पा लेत बाड़े। सेवक के लरिको-फरिकन के जिनगी के सत्यानाश हो जात बा। कहानी में एक जगह तिलक-दहेज के बात आवत बा ज़रुर, जब सेवक अपना एगो संगी धरमदेव से अपना दयनीय हालत आ बियहे जोग भइल अपना लइकी के बारे में बात करत बाड़े। कहानी के अंत में सेवक के लइका बंसरोपन अपना भाई रामअधार से कहत बाड़े कि 'असो कइसहूँ रधिकवा के बिआह करवावल जरुरी बा' आ मू जात बाड़े' बाकिर ई संवाद ह, वस्तु ना।
अइसने कुछ अन्हरगर्दी विष्णुदेवो तिवारी कइले बाड़े। 'पाती' के 50 अंक(मार्च-जून 2007) में छपल भोजपुरिए कहानी के अपना एगो समीक्षा 'भोजपुरी कहानी यात्रा के कुछ पड़ाव' के शुरुआती पाँत में ऊ लिखत बाड़े- "भोजपुरी कहनिन के पहिल किताब 'जेहल क सनदि' 1948 ई. में छपल बाकिर एकरा पहिलहीं एह किताब के लेखक अवध बिहारी सुमन के कुछ कहानी पत्रिका में छप चुकल रहली स।" कहे के आवश्यकता नइखे कि विष्णुदेव के ई कहनाम सही नइखे। ना त कृष्णानंद, ना ही केहू अउरी आलोचक भा खुद अवधे बिहारी सुमन, एह बात के कहीं जिकिर कइले बा लोग। भोजपुरी कहानी के इतिहास से पता चलत बा कि भलहीं भोजपुरी के पहिल कहानीकार 'सुमन' जी होखसु आ उनकर कहानी 'मलिकार' भोजपुरी साहित्य के पहिली कहानी होखे, पत्रिका के माध्यम से पाठकन के सोझा आवे वाली पहिली कहानी विंध्याचल प्रसाद गुप्त के 'केहू से कहेब मत' ह, जवन महेन्द्र शास्त्री के संपादन में छपे वाली पत्रिका 'भोजपुरी' में, 1948 में छपल रहे।
(ख) अतिशयोक्ति भा झुठउआ गर्व-भार से जँताइल अनावश्यक कथन:
आलोचना के एहू मेंड़ प विष्णुदेव तिवारी के नाँव लिहल अप्रासंगिक ना होई। कबो-कबो इहाँ के बँगइठी भाँजे में अपने कपार थूर लेनीं। जइसे, बच्चन पाठक 'सलिल' के उपन्यास 'सेमर के फूल' के समीक्षा के दौरान जवन इहाँ के लिखनीं, ओह से सचेत आ स्वतंत्र कलमकार के रूप में इहाँ के छवि प चोट पहुँचल। तिवारी जी लिखत बानीं- "रामधारी सिंह 'दिनकर' के कृति 'संस्कृति के चार अध्याय' के भूमिका जवाहरलाल नेहरू लिखले बाड़े। यदि 'दिनकर' के एह किताब से जवाहरलाल के भूमिका हटा दिहल जाउ त' 'संस्कृति के चार अध्याय' के महनीयता अपंग-भंग हो जाई।" (सलिल के भोजपुरी उपन्यास/लुकार-40/पृ. 10)
बस एगो बात तिवारी जी से पूछल जा सकत बा कि उहाँ के 'दिनकर' आ जवाहरलाल के कतना पढ़ले बानीं आ उहन लोग के बारे में कतना कुछ जानत बानीं?
सुनल-सुनावल बातन के अन्हुअइला में टाँक देला से वृत्ति के सँगहीं-सँगे अपनो गरिमा आहत होले, एह बात के तिवारी जी जतना जल्दी समझ लेसु, ओतना बेहतर।
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