जिअते काम-किरिया सपरावे के प्रवृत्ति माने 'अभिनंदन ग्रंथ' के बहाने आत्म-तर्पण: विष्णुदेव तिवारी
आजु-काल्ह भोजपुरी दुनियाँ में 'अभिनंदन ग्रंथ' के चलन बढ़ रहल बा। एमे दाम, जिनका के अभिनंदित कइल जाला, ऊ लगावेले आ आलोचना वगैरह के काम उनकर हसबखाह लोग करेला। कुछ लोग लाजहूँ-लेहाजे आ कुछ लोग डरहूँ अभिनंदित होखे वाला साहित्यकार के व्यक्तित्व आ कृतित्व पर कलम रगरेला। जिअता साहित्यकार के ख़िलाफ़ ज़ल्दी केहू कलम ना उठावे आ अगर उठा ले, त ओकरा प आफते आइल समझीं। मुस्टंडन के गिरोह एकवट के सच्चाई कहे वाला ईमानदार महाराज जी के हुलिया अस बिगार दीही कि उनका के आपन मेहरारू के अलावा शायदे केहू दोसर पहचान पाई!
आलोचना ठकुरसोहाती ना ह। आलोचना माने खाली दोषो-दर्शन ना ह, बाकिर खाली प्रशस्तियो-गान त ना ह। 'अभिनंदन ग्रंथ' के प्रकाशन भा 'अमृत महोत्सव' के छपासन कवनो संस्था के देख-रेख में, जेमे अभिनंदित-वंदित साहित्यकार के दख़ल ना होखे, होखे त' ममिला ठीक हो सकत बा बाकिर मए गूर-गोइँठा अपने कपारे आ लिलारे चंदन ख़ातिर हाथ पसारे? अंदाजा लगावल जा सकत बा कि चंदन ख़ातिर आतुर साहित्यकार महाराज के साहित्यिक हैसियत कवना पहाड़े अड़ल होई!
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