हकीकत: उमेश कुमार राय
खोरी झार बहारी के का करबs,
जब घर दुआरे कंजास भरल
खूब सज संवर के का करबs,
जब मन मनदिर में कलेश भरल।
जब मन मनदिर में कलेश भरल।
आन के बुझारत अब का करबs,
जब अपने काना फुंसी में बाड़ फंसल।
राम रहीम के पुज के का करबS,
जब अपने हीक भर पाप में बाड़ धंसल ।
जब अपने हीक भर पाप में बाड़ धंसल ।
जानी के लोक परलोक के का करबS,
जबकि आस पड़ोस के ना जनल।
सकल समाज के भलाई का करबS,
जबकि अपने परिवार कुछ ना जनल।
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