आत्म-संस्मरण: जिनिगी परत-दर-परत डॉ रंजन विकास के, आपन आ अपना लोगन के जिनगी के कुछ बहुमूल्य क्षणन के कहानी के नाँव ह- फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया, जेकरा के ऊ 'आत्म-संस्मरण' कहत बाड़े। उनका अनुसार- "हमार आत्म-संस्मरण 'फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया' में मन के उपराजल कुछुओ नइखे, बलुक जिनिगी में जे हमार देखल-भोगल जथारथ बा ओकरे के उकेरे के कोसिस कइले बानीं। साँच कहीं त पचरुखी एगो छोटहन कस्बा भइला के बादो हमरा ख़ातिर बहुते मनोरम, रमणीक आ खास रहल बा। एह जगह से हमार बचपन के सगरी इयाद आजो ओसहीं जुड़ल बा, जइसे पहिले रहे। पचरुखी आम बोलचाल के भाषा में पचरुखिया नाम से जानल जाला।" (आपन बात/14-15) भारतीयता के कई सुघर पहचान चिन्हन में से एगो इहो ह कि ऊ कबो अपना उद्भव-स्रोत, आपन ज'रि ना भुलाइ। भगवानो अवतार लेले त' सामान्य आदमी नियर कहेले- "भले लंका सोना के होखसु, हर तरह से अजाची, शक्ति आ सत्ता के शीर्ष प खाड़ होके विश्व-वैभव के चकचिहावत होखसु, हमरा जन्मभूमि अयोध्या के बरोबरी करे वाला स्थान सउँसे सृष्टि में कतहूँ नइखे। महतारी आ मातृभूमि सरगो से बड़ होली।" भौ...
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