BHOJPURI Poems by Hareshwar Roy
81. ए सुखारी चाचा: डॉ. हरेश्वर
कटहर लेखा मुंह काहे लटकल ए सुखारी चाचा।
लागता कि हार तोहरा खटकल ए सुखारी चाचा।।
ताल के टोपरा बेंच बांच के लड़ल ह तूं बिधयकी।
हरलह त पोंछिया तहार सटकल ए सुखारी चाचा।।
भोरहीं भोरहीं तूं त दारु से करत रहलs ह कूल्ला।
फुटानी के बरखा त अब चटकल ए सुखारी चाचा।।
बहुत दिनन से डूबि डूबि के पीयत रहल ह पानी।
लगता कि अबकी टेंगर अंटकल ए सुखारी चाचा।।
राजनीति के छोड़s चस्का जा अब कीनs कटोरा।
साधू चा के पिछवा चलs लटकल ए सुखारी चाचा।।
80. जाड़ दद्दू: डॉ. हरेश्वर
फेर एहू साल बाड़े जाड़ दद्दू आइल
बा कूहा के चद्दर में गांव लपेटाइल।
दुअरा के कउड़ प लागता मजलिस
महंगुआ के मेटा से सूटर खिंचाइल।
सतुआ पीसात बाटे लिट्टी बनावे ला
दादी खाति माटी के बोरसी पराइल।
अंगनाई लिपात बा दुअरवा लिपाता
गैंड़ा के खेतवा में कोबिया फुलाइल।
पछेया के हवा चुभेला तीर जइसन
हड़वा में हमरा बा जड़वा समाइल।
79. हमार सुगउ: डॉ. हरेश्वर
हमार सुगउ हो हमार सुगउ हो हमार सुगवा
चलि गइलs कवना देसवा हो हमार सुगवा।
सवख आ सिंगार अब हम केकरा पर करम
मीतवा केकरा पिरितिया में रात- दिन जरम
केकरा ऊपर करब अब हम गरब गुमनवा।
रहलs अलम तूहीं एह हमरी जिनिगिया के
रहलs सियाही तूं एह जिनिगी कलमिया के
नाइ जिनिगी के हमरी तूं रहs खेवनिहरवा।
का हड़बड़ी रहे अबहीं कुछ दिन त जीहीतs
जिनिगी के गुदरी अभी कुछ दिन त सीहीतs
छोड़ी के काहे भगलs तू माया के मुलुकवा।
सभके एक दिन बोलउवा त अइबे करी जी
जे भी आइल बा एहिजा ऊ जइबे करी जी
बड़ुए अइसने बनावल बिधना के बिधनवा।
78. खोजत बानी: भाग २: डॉ. हरेश्वर
अपना बचपन के गांव रे भईया खोजत बानी।
अपना पुरखन के नांव रे भईया खोजत बानी।।
दोनी ढेंकी जांता कुंड़ी कोल्हू भाथी मोट
मथनी ढबरी लोढ़ा पीढ़ा डोंड़ा कांड़ी सोट
सेर पसेरिया पाव रे भईया खोजत बानी।
चूल्हा चौकी दउरा मउनी झांपी अउर झंपोली
कूंड़ा भांड़ी कोठिला डेहरी बोरसी गाड़ा डोली
रसिया के ऊपर बढ़ांव रे भईया खोजत बानी।
घेंवड़ा लिबरी चोंथा लाटा अंगारी के लिट्टी
उमी होरहा तिलई तिलवा पीठा आ दलपिट्ठी
ऊख के पहीला ताव रे भईया खोजत बानी।
गेंथा गेंथरी गांती बिहिटी झूला तही लंगोट
सूजनी असनी लेदरा गणतर चाभी वाला खूंट
गोरेया बाबा के ठांव रे भईया खोजत बानी।
77. खोजत बानी: भाग १: डॉ. हरेश्वर
अपना बचपन के गांव रे भईया खोजत बानी।
अपना पुरखन के नांव रे भईया खोजत बानी।।
सांझ सुहानी रएन सलोनी कऊड़ा वाली भोर
फुदगुद्दी के धूर नहाई चकवा चकई चकोर
करिया कगवा के कांव रे भईया खोजत बानी।
लोरी कजरी बिरहा झूमर सोहर आ जंतसार
रोपा कटनी गीतन के संग झूमत खेत बधार
पीपरा के सीतल छांव रे भईया खोजत बानी।
गुली डंटा दोल्हा पाती चिक्का ती ती ती ती
गोली वाली नन्हकी गुब्भी तिरका लाता लुत्ती
दुअरा पर लट्टू दांव रे भईया खोजत बानी।
अरवन झगरा नाधा जोती घारा मारल लऊर
सेंगरी सेंगरा बहंगी मुंगरा चंउर ठेंगरी मऊर
जलकोबिया के नाव रे भईया खोजत बानी।
76. जिनिगिया अजबे खेल खेलावे: डॉ. हरेश्वर
जिनिगिया अजबे खेल खेलावे।
जिनिगिया अजबे खेल खेलावे।
कबहूं बेटा कबहूं परनाती कबहूं बाप बनावे
कबहूं छप्पन भोग खिआवे कबहूं नून चटावे
कबो मुआवे कबो जिआवे कबो कबो तड़पावे
जिनिगिया अजबे खेल खेलावे।
कबो चढ़ावे सिकहर ऊपर कबो उतारे पानी
कबहूं देवे महल अंटरिया कबहूं चूवत छानी
कबो उठावे कबो गिरावे कबो कबो ठठरावे
जिनिगिया अजबे खेल खेलावे।
आपन कबो पराया होले कबो पराया आपन
कबो गले में फूल के माला कबो गले में नागन
कबो हंसावे कबो रोआवे कबो कबो छछनावे
जिनिगिया अजबे खेल खेलावे।
75. हमार जिंदगानी: डॉ. हरेश्वर
हमार जिंदगानी हमार जिंदगानी
भइलि पानी पानी हमार जिंदगानी।
लागता कि बीचहीं से जाइब चीराई
अइसन मचल बा हमार खींचातानी।
पाले परल बानी अइसन बलम के
माटिया में मिलल बा भरल जवानी।
हम भीड़ियो में हरदम रहीना अकेले
रहि- रहि के दरदा उठेला तूफानी।
नोकरी के रसरी से अइसन छनइनी
कि चउबीस घंटा दूहल जात बानी।
74. मुंहवा झंकोर देबि: डॉ. हरेश्वर
होइबे अंखफोर, त आंख तोर फोर देबि
जादे फटफटइबे, तोर मुंहवा झंकोर देबि।
चलत रहु हरदम गिरवले आपन मुंड़िया
जहां मुंड़ी उठवले, त मुंड़िया ममोर देबि।
जवने-जवन कहब, तवने- तवन सांच बा
कटले तें बात, त कुकुर जस भंभोर देबि।
आम के कहब महुआ, त तेहूं कहबे महुए
नाहीं त आम अइसन, भूसवा में गोर देबि।
बनबे चल्हांक ढेर, त बतिया हमार सुन ले
धरब फंफेली, आ फोकचा जस फोर देबि।
73. लूकड़न के राज बा: डॉ. हरेश्वर
गूंडा- मवालीन आ लूकड़न के राज बा
लंगवन- बहेंगवन के मुंडी पर ताज बा।
लुच्चन के, टुच्चन के, छतिया उतान बा
एहनी के इचिको ना डर बा ना लाज बा।
बोकड़न- लफंगन के चलती बा देस में
सहजे का एहनी के अपना पर नाज बा।
कुक्कुर के पोंछ अस एहनी के मोंछ बा
अंगुरिन में एहनी के भरल पोखराज बा।
बाटे हलिया हमार त भइल तिरसंकु के
जमीनिया पर सरप आ बदरी में बाज बा।
72. जरुरी बा: डॉ. हरेश्वर
पथराइल अंखियन में सपना सजावल जरुरी बा
दिल में बनल दरारन के दूरी मेटावल जरुरी बा।
परदा के पाछा से खेलता खेल कवनो दुसमनवा
ओ दुसमन के परदा में आग लगावल जरुरी बा।
दिने-दिन हेहर आ जटही के बढ़ल जाता जंगल
एह जंगल प आरा आ टांगा चलावल जरुरी बा।
सभ लोगन के पासे बा कवनो ना कवनो सवाल
ए सभ सवालन के समेटि के उठावल जरुरी बा।
सूर जी बाल्मीकि जी दास तुलसी कबीर जी के
घर के बचन सभ के कविता पढ़ावल जरुरी बा।
71. रमेसर गांव में: डॉ. हरेश्वर
भक भक बींड़ी धूकत फिरेले राय रमेसर गांव में
पचपच पचपच थूकत फिरेले राय रमेसर गांव में।
नेहा धोआ के खा के पी के मार बिदेसिया इत्तर
झारि के लुंगिया घूमत रहेले राय रमेसर गांव में।
कबहूं मोटको कबो पतरको से सटिसटि सटरावें
चचिया के घरवा चाह पीएले राय रमेसर गांव में।
कन्हिया प हरदम राखेले लाल बिन्हचली गमछी
आपन किरिया खात फिरेले राय रमेसर गांव में।
बिन काठी के आग लगाके मनहीं मन मुसुकालें
गड़हे- गड़हा खोनत फिरेले राय रमेसर गांव में।
70. खोंखबे नूं करी: डॉ. हरेश्वर
केहू के खोंखी आई त खोंखबे नूं करी
पेनवा पुरान हो जाई त पोंकबे नूं करी
मंच मिली नचनिया के त नाची - कूदी
नेता के मंच मिली त झोंकबे नूं करी।
कुछ गवईया गावस ना बस अललाले
कुछ बजवईया बजावेले बस झपताले
कुछ नचवईया खलिसा उछड़ेलन जा
कुछ बोलवईया खलिसा पकपकाले।
69. गजब हो गइल: डॉ. हरेश्वर
मइया घरवा तोरा कहइनी सासू घरवा रउरा
गजब हो गइल,
बुचिया गउरी भइली गउरा, गजब हो गइल।
रहीं कनेयां त हमरा के, खूब खिअवली सासूजी
पुहुट बनावे खाति हमके, दूध पिअवली सासूजी
आरे थोरहीं दिन में हो गइनी हम, गरई से सउरा
गजब हो गइल।
चूल्हा मिलल, चौका मिलल, मिलल चाभी ताला
रिन करज के बोझा मिलल औरु छान्ह के जाला
अब परे लागल इयाद त हमरा आपन ननिअउरा
गजब हो गइल।
केस उजराइल, मुंह सूखाइल, आंख-कान बेराम
गजबे के ई जिनिगी बिया समझ ना आइल राम
देखते देखत हो गइनी एकदमहीं हम बसिअउरा
गजब हो गइल।
68. रोवतारन बाबू माई : डॉ. हरेश्वर
रोवतारन बाबू माई पूका फारि - फारी
खेत बेंच के किनले बा पपुआ सफारी।
साल भ के खर्ची बर्ची कहवां से आई
उसिना आ अरवा अब कहां से कुटाई
कइसे लगवावल जाई खिरकी केवारी।
छठ -एतवार कुल्हिए फाका परि जाई
बुचिया के कइसे अब तीजिया भेजाई
मुसुकिल मनावल होई फगुआ देवारी।
चिकन- मटन के संगे दारु खूब घोंकी
पी के पगलाई तब कुकुर जस भोंकी
कुरुता फरौवल कके लड़ी फौजदारी।
67. पानी बहुत पिअवले बानी: डॉ. हरेश्वर
लइके से मइया दइया के पानी बहुत पिअवले बानी
जबसे होस सम्हरले बानी कइगो नाव डूबवले बानी।
भीतरा से सयतान हईं हम ऊपरा से बम बम भोला
सुधा बाछी बनिके मितवा लुगा बहुत चबवले बानी।
मानुस के खून मुंहे लागल हम भेंड़िया के नसल हईं
अपना देहिंया के ऊपर मनई के खाल मढ़वले बानी।
रोहू फरहा अउर बरारी कहंवा बांचि के जइहन सन
सिधरी भी एकोना बंचिहें ऐसन जाल बनवले बानी।
जाति- पांति पाटी- पउवा के सुरुए से सवखिन हईं
जबहीं मौका मिलल बा नीके से आग लगवले बानी।
66. आस के पात: डॉ. हरेश्वर
मन ठूंठ प
आस के पात आइल।
जेठ मास के तपन ओराइल
बा सावन ले आइल पुरवाई
अब अगस्त के फूल खिलल
हमरा गोड़न से गइल बेवाई
नवनीत से
नेहाइल रात आइल।
ओठ फाग के गीत भइले स
अंखियां भइली सन अमराई
अब जाके इ समझ में आइल
कि मितवा का ह आखर ढाई
गुलाबन से
भरल परात आइल।
65. हम ना आइब रे: डॉ. हरेश्वर
हम ना आइब सुनु रे भगता ! हम ना आइब रे
तोर देस भइल कल्युगी भगता हम ना आइब रे।
नाहीं गोप गोबरधन कतहूं ना गोपी ना जमुना
खाली पोले- पोले लुगी भगता हम ना आइब रे।
नइखन लउकत वृंदावन में एकहूं गइया बाछा
लउके रोवत सुगा सुगी भगता हम ना आइब रे।
मोरपंख माखन मिश्री ना नाहिं कदम के डाल
चारु देनिए झुग्गी- झुगी भगता हम ना आइब रे।
सत्य प्रेम के रोज जरावत बड़ुए लोगवा होली
बाजे झूठवा के डुगडुगी भगता हम ना आइब रे।
64. मार बढ़नी: डॉ. हरेश्वर
मार बढ़नी रे! कइसन देसवा के चरितर बा
दू कौरा भीतर ओकरा बाद देवता पितर बा।
अपना अपना जतिया पर सभ के घमंड बा
बहे संड़की प खून उड़त मंच से कबूतर बा।
भेदवा लबेदवा के मान खूबिए बढ़ल बड़ुए
सइयक गो सवाल बड़ुए एकहूं ना उत्तर बा।
लइका आ लइकी में फरक करत बाबू माई
दुलहनिया अठारह के आ दुलहा बहत्तर बा।
दाम ज्ञान के गगरिया के फूटल छदाम बाटे
मान कदर ओकर बा जे फूटल कनस्तर बा।
63. गाईं कइसे: डॉ. हरेश्वर
गाईं कइसे
अंटकल गीत।
सून दुअरवा, अंगना सून
मन में आके पसरल जून
हाथ से हमरा
सरकल जीत।
बचवा बाम्बे, दिल्ली बचिया
मोरा संग चितकबरी बछिया
चलनी छान्हि
दरकल भीत।
62. सवाल घूमता: डॉ. हरेश्वर
लोग देसवा के लेइके सवाल घूमता
मोर बालम बिमान से नेपाल घूमता।
जेकरा टिकठ एमेले के चाहीं असों
उ कइ - कइ गो लेके दलाल घूमता।
जेकर रेकड़ पुरान जान मारे के बा
उ अंजुरिया में लेइके गुलाल घूमता।
जवन चोर-बटमरवन के सरदार बा
अपना संगे उ लेके कोतवाल घूमता।
जेकरा काठी जरावे के नइखे सहूर
उहो हाथ में उठवले मसाल घूमता।
61. चलुचलु रे मनवां : डॉ. हरेश्वर
चलुचलु रे मनवां गांव कि तनिका घूमि आईं
कउआ ममवा के कांव रे तनिका सुनि आईं।
निर्मोही के एह नगरी में पियरइली सन आंख
गिद्धराज जटायु लेखा कटल गिरल बा पांख
अब बूढ़ - बुजुर्गन के तनिका सुन गुनि आईं
चलुचलु रे मनवां गांव कि तनिका घूमि आई।
ओद पुअरसी लेखा तनवां गते- गते जरत बा
गते- गते नोनी जइसन मनवां हमार झरत बा
होखनीं हम जोर एकहरा तनिक दूगुनि आईं
चलुचलु रे मनवां गांव कि तनिका घूमि आईं।
प्यार मुहब्बत इहां ना बाटे माहुर बोकरे नल
का जाने कइसन बा आपन आवे वाला कल
त दादी अम्मा के पांव त तनिका चूमि आईं
चलुचलु रे मनवां गांव कि तनिका घूमि आईं।
60. काहे मारेलs मुसुकिया: डॉ. हरेश्वर
काहे मारेलs मुसुकिया तू ऐसन जनमार
कि कइलs हियरा में हमरा दरारे - दरार।
मिलबs त तोहके बताइब हम संघतिया
कि बच्चू सचहूं के हईं हमहूं तिरहुतिया
तहरा मुसुकी मिसाइल से होई तकरार।
जवन वादा भइल बा तूं जनि भूल जइह
कबो दोसरा के देखके तूं जनि मुसुकइह
तहरा मुसुकी प बाटे हमार एकाधिकार।
जदि बतिया ना मनबs ए बचवा हरेसर
त दिहबs छोड़ाइ तहार बनल परफेसर
दिलफेंक बनल छूटी तहार एही एतवार।
59. इयार कहेली: डॉ. हरेश्वर
प्यार से हमके धनियां इयार कहेली
आ चोन्हाली त बुढ़उ हमार कहेली।
कबो कबो जब उ खिसिया जाली त
त उ हमके मीआदी बोखार कहेली।
जेब में जब रुपुलिया ना एकहू मिले
मुंह चुनिया के रानी भिखार कहेली।
चीर के दिल देखवनी कइक बेर हम
एक नमरिया उ तबहूं लबार कहेली।
जब कबो काल हम रिसिया जाइला
पुच्चुकारेली गोरेया डीहवार कहेली।
58. हमार जान ह भोजपुरी: डॉ. हरेश्वर
हमार सान ह, हमार पहचान ह भोजपुरी
हमार मतारी ह, हमार जान ह भोजपुरी।
इहे ह खेत, इहे खरिहान ह
इहे ह सोखा, इहे सिवान ह
हमार सुरुज, हमार चान ह भोजपुरी।
बचपन बुढ़ापा ह, इहे जवानी
अगिया भी इहे ह, इहे ह पानी
हमार सांझ, हमार बिहान ह भोजपुरी।
ओढ़िला इहे, आ इहे बिछाइला
कूटिला इहे, आ इहे पिसाइला
हमार चाउर, हमार पिसान ह भोजपुरी।
धरनिया ह इहे, इहे ह छान्ही
हमरा पसीना के ह इ कहानी
हमार तीर ह, हमार कमान ह भोजपुरी।
इहे ह कजरी, इहे ह फाग
इहे कबीरा ह, इहे ह घाघ
हमार धरम ह, हमार ईमान ह भोजपुरी।
57. लहरिया लागे ए राम: डॉ. हरेश्वर
जेठ के महीनवा के मध दुपहरिया, लहरिया लागे ए राम
सनकल बा पछेया बेयरिया, लहरिया लागे ए राम।
सून बंसवरिया आ सून फुलवरिया, लहरिया लागे ए राम
सूनी रे डगरिया बधरिया, लहरिया लागे ए राम।
सूखली तलइया आ मुअली मछरिया, लहरिया लागे ए राम
आहर पोखर में पपरिया, लहरिया लागे ए राम।
फेंड़वा ना रुखवा ना कतहीं छहंरिया, लहरिया लागे ए राम
घरवा बा बेगर केवरिया, लहरिया लागे ए राम।
सावन के असवा प गिरल बजरिया, लहरिया लागे ए राम
पिया जाके फंसले सहरिया, लहरिया लागे ए राम।
56. जवानी खपि जाई बचवा: डॉ. हरेश्वर
गउवां छोड़ि सहर जनि जइहs, हो जइबs बे पानी
जवानी खपि जाई बचवा।
होखे ऐसन जनि नादानी, जवानी खपि जाई बचवा।
ताल - तलइया सब छूटि जइहें, छूटिहें बाबू माई
बर्हम बाबा के छूटी चउतरा, छूटिहें छोटका भाई
सुसुक सुसुक के रोइबs बबुआ, केहू ना पहिचानी
जवानी खपि जाई बचवा।
गली-गली मीरजाफर ओइजा चौक चौक जयचंद
टूंड़ उठवले बिच्छू मिलिहन, फू - फू करत भुजंग
चउबीस घंटा होई पेराई, होइ जाई कमर कमानी
जवानी खपि जाई बचवा।
बासी बासी सुबह मिली, अरुआइल सांझ उदास
पंख नोचाइल चिरईं बनबs, भुंइ प गिरी आकास
आन्हर गूंग बहिर होइ जइबs, होई खतम कहानी
जवानी खपि जाई बचवा।
55. चलीं जा उजारे ए हरि: डॉ. हरेश्वर
हरि हरि बाबा के लगावल फुलवरिया
चलीं जा उजारे ए हरि।
ओही फुलवरिया में चम्पा चमेली सुंदर
आरे रामा कठिया लगाके चलीं बारे
चलीं जा उजारे ए हरि।
ओही फुलवरिया में तितली फतिंगी उड़ें
आरे रामा चलीं जा पंखिया कबारे
चलीं जा उजारे ए हरि।
ओही फुलवरिया में सावन के झूला रामा
आरे रामा चलीं जा ओके तुरे- तारे
चलीं जा उजारे ए हरि।
ओही फुलवरिया में बाबा के आत्मा रामा
आरे रामा चलीं जा ओहके अखाड़े
चलीं जा उजारे ए हरि।
54. चार गो कहांर: डॉ. हरेश्वर
राजाजी पोसले बानी चार गो कहांर
पंडित आ ठाकुर आ अहीर चमार।
के चांपी कम माल के चांपी जादा
जूझता लोग एहीके लेके चारु यार।
सभे के आपन-आपन बाड़े भगवान
आपन आपन तीज आपन त्योहार।
हर जगे कोटवा के बढ़ला चलन से
बढ़ल जाता गते-गते दिल के दरार।
बानरा बनाके नचावत बा मदरिया
उहे हिगरावत बड़ुए पोखरा इनार।
53. जनता धुधुकारी: डॉ. हरेश्वर
जनता धुधुकारी राजा अधकपारी बा
सब हवा-हवाई बा सब अखबारी बा।
रामराज के सपना घूमता लुआठाईल
सहीदन के कर्जा अभी ले उधारी बा।
देस के खजाना लेके उड़ल गोसईंया
बैठल बिदेसवा में काटत फरारी बा।
भठिहारा के नांव बाटे बाल ब्रह्मचारी
रुप में कलक्टर के घूमत पटवारी बा।
बिकास के डुगी बहुते पीटाता बाकिर
बिछौना हमार त अभी ले पेटाढ़ी बा।
52. सइयां हमार: डॉ. हरेश्वर
सखिया, सइयां हमार बड़का दंतनिपोर हs
एक नमर लतखोर हs ना।
लुंगी-गंजी झार के पड़वा का कादो बतियावे
काम के नांव प ए बाचो उ सींको ना सरकावे
सखिया, सइयां हमार बड़का मुफुतखोर हs
एक नमर लतखोर हs ना।
गांजा पीये, भांग पिएला, घोंके अउरी ताड़ी
सड़लो माठा पी जाला मुअना हांड़ी के हांड़ी
सखिया, सइयां हमार बड़का जीभचटोर हs
एक नमर लतखोर हs ना।
रावन लेखा मोंछ रखेला पेट ओकर नदकोला
घोड़मुहां के मुंह देखिके बुचिया कहे भकोला
सखिया, सइयां हमार बड़का टुकरखोर हs
एक नमर लतखोर हs ना।
51. सुनीं ए गिरि बाबा: डॉ. हरेश्वर
सब कुछ करबि हम, करबि ना नेतागिरी
सुनीं ए गिरि बाबा, हेनें आईं हमरा भिरी।
झूठे-झूठ ओढ़ना आ झूठे-झूठ बिछवना
लोग गरियाइ कहि कहि मटिया लगवना
मोसे न होइ भांटगिरी, सुनीं ए गिरि बाबा।
देंह भलहीं ठेठाइब, तनी कमहीं कमाइब
बाकि चोरी बयमानी के पंजरा ना जाइब
चाहीं ना मोके अमीरी, सुनीं ए गिरि बाबा।
माल, मंच, माइक आ लाम - लाम कुरता
बाबा! एकरे चसक में बिकाइल रमसुरता
करता अब बाबागिरी, सुनीं ए गिरि बाबा।
50. जीय हो जीय ढाठा: डॉ. हरेश्वर
जीय हो जीय ढाठा
साठा में बनल रहs बाईस के पाठा।
तोहके खिआइब मलीदा- मलाई
बोतल के बोतल पियाइब दवाई
भुअरी के घीव से बनाइब फराठा।
रउरा के नाया पोसाक सियवाइब
लावा मोबाइल रवा के दियवाइब
जूता किनाइ सुनीं नाइकि भा बाटा।
आन्ही आ पानी से तोहके बचाइब
लूक से बचावे ला सतुआ पियाइब
रउरे नावें लिखाई हमार बीसो काठा।
49. मुंह बढ़ल जाता: डॉ. हरेश्वर
हाथ के कामे ना आ मुंह बढ़ल जाता
हमार परान महमंड देने चढ़ल जाता।
महंगाई कलमुंही करेजा खंखोरतिया
जवानी के रंग धीरे धीरे झड़ल जाता।
लड़ाई लड़े के जोसे नइखे केहुओ में
हारल सिपाही अस जंग लड़ल जाता।
सोनचिरैयां जरी के काहे खाक भइली
दोस के एक दोसरका पर मढ़ल जाता।
असली समस्या से ध्यान हटावे खातिर
रोजे रोज नया नया नारा गढ़ल जाता।
48. का कहीं अपना मन के: डॉ. हरेश्वर
हमरा अपने ऊपर खिझिआए के मन करता
हमरा दोसरो ऊपर खिसियाए के मन करता।
गड़हा के महकत पानी अइसन ठहरल बानी
आन्ही में पतई लेखा उड़ियाये के मन करता।
ना जाने कतना दिन भइल टकटकी लगवला
सावन में ढेला अस भिहिलाये के मन करता।
अगल- बगल के लोगवन के चरित्तर देख के
कबो रोवे, कबो खिलखिलाए के मन करता।
अब कतना दिन ले गूंग - बहिर बनल रहे के
हमरा ताड़ प चढ़के चिचियाए के मन करता।
47. पागल जिया हो गइल: डॉ. हरेश्वर
प्यार में रउरा पागल जिया हो गइल
मोर दिलवा जरत बींड़िया हो गइल।
हमके खाए नहाये के सुधि ना रहल
ई सरिरिया सूखल छड़िया हो गइल।
दढ़िया बढ़ल, केसवा लटिया गइल
मोर निनिया उड़ल चिड़िया हो गइल।
मीत जसहीं मिलन के मिलल अंगेया
मन में लागल कि ई बढ़ियां हो गइल।
हमरा पंजरा कहे के बहुत कुछ रहल
पर मिलनी त जीभ बुढ़िया हो गइल।
46. जियान हो गइल: डॉ. हरेश्वर
आंखि में रात बहुते सेयान हो गइल
हमार असरे में जिनिगी जियान हो गइल।
दिल के दरिया में दर्दे के पानी रहल
देंह जइसे कि भुतहा मकान हो गइल।
आस के डोर टूटल - कटल भाई जी
आइल सपनों त अचके बिहान ना भइल।
हमरा ओठ के बगानी में फूल का खिलल
मन के चउरा के तुलसी झंवान हो गइल।
सउंसे जिनिगी कटल केकरो रहिए तकत
मौत के राह बहुते आसान हो गइल।
45. उबारीं गुरुजी: डॉ. हरेश्वर
उबारीं गुरुजी जी उबारीं गुरुजी
एके बा हंथजोरी उबारीं गुरुजी।
माया के कादो में जीव लेटाइल
कइसे के फींचीं पसारीं गुरुजी।
हर देने बाटे अन्हारे-अन्हार जी
रावा तनिका सा दीं दीयना बारी।
हमरा मुरख के दीं रहिया देखाई
इहे भीखिया मांगता बा भिखारी।
44. गज़ल लिखि दीं: डॉ. हरेश्वर
तनिका घूंघटा के टारि दीं गज़ल लिखि दीं
रावा मुखड़ा के नांव नीलकमल लिखि दीं।
तनिका नैनन के खोलि के अंजोर कइ दीं
त ए अंजोर के अंजोरिया धवल लिखि दीं।
मुस्कुरा दीं तनीसा अधखिलल कली अस
कि हम मधुकर के रानी असल लिखि दीं।
मौन के त अपना एतना बनाइ दीं मुखर
कि एह अदा के नांव ताजमहल लिखि दीं।
खाढ़ पल भर रहीं कि भर नजर देख लीं
त ए धरा के सबसे सुन्दर नसल लिख दीं।
43. खेल जारी बा: डॉ. हरेश्वर
सहादत पर सियासत के खेल जारी बा।
अमानत में खेआनत के खेल जारी बा।
सत्तरो से ऊपर के होखली इ आजादी
बिरासत के तिजारत के खेल जारी बा।
कहे खातिर बा कानून के राज बाकिर
हिरासत के जमानत के खेल जारी बा।
गांव से सहर तक संड़क से सदन तक
बयमानन के स्वागत के खेल जारी बा।
लोकतंत्र के नांव प सालन पच्चास से
हर जगहा महाभारत के खेल जारी बा।
42. प्यार हो गइल: डॉ. हरेश्वर
हमके रोग एगो बड़ी बरियार हो गइल
यार प्यार हो गइल यार प्यार हो गइल।
कवनो नैनन के बान आ करेजा धंसल
कठकरेजावा हमार कचनार हो गइल।
केकरो रुप के नसा आंख में आ बसल
हमरी जिनिगी से चएन फरार हो गइल।
कवनो पुरवा निगोड़िया के पाके छुवन
दरद दिल के समुंदर में ज्वार हो गइल।
हमपे दइबा के किरिपा बा भारी भइल
ई प्यार जीए ला ठेहा बरियार हो गइल।
41. बढ़ियां गुलमिये रहे: डॉ. हरेश्वर
ए अजदिया से बढ़ियां गुलमिये रहे
बहुरुपियन से नीमन जुलमिये रहे।
जहर आ माहुर इ पेनवा ओकाता
ठीक एकरा से कंडा कलमिये रहे।
कइयक गो घर बाटे दारु से उजरल
एह दरुइया से नीमन लबनिये रहे।
चाटs ताटे भुअरा सुगरवा जवानी
नीक एकरा से लामी चिलमिये रहे।
मासे-मास चारु देने बाटे लदराइल
पिजा बरगर से आछा ललमिये रहे।
गाँवन में फटहाली देखनी
नगरन में बदहाली देखनी
मेहनतकश लोगन के हाथे
खाली खाली थाली देखनी I
ठंढा चूल्हा चिसत देखनी
पैर बिवाई रिसत देखनी
मालिक लोगन के सेवा में
कइ गो एँड़ी घिसत देखनी I
अरमानन के जरत देखनी
हरिश्चंद के सरत देखनी
परवत जइसन दरद लेले
बाबूजी के मरत देखनी I
त्योहारन के रोवत देखनी
बीज फूट के बोवत देखनी
घोड़ा बेंच के साहूकार के
खर्राटा संग सोवत देखनी I
फूलन के मरुआइल देखनी
शूलन के अगराइल देखनी
अगहन पूस महीना में भी
दुपहरी खरुआइल देखनी I
39. हमरा प्यार हो गइल: डॉ. हरेश्वर
हमरा रोग एगो बड़ी बरियार हो गइल
प्यार हो गइल हमरा प्यार हो गइल I
तीख नयनन के बान से बेधाइल जिया
हमार जियरा बेचारा शिकार हो गइल I
केकरो रूप के नसा आँख में आ बसल
हमरा अँखिया से निंदिया फरार हो गइल I
कवनों पुरवा निगोड़ी के पा के छुवन
दर्द दिल के समुन्दर में ज्वार हो गइल I
हमार अरमान बा रोग निकहा बढ़े
अब त जिए के इहे आधार हो गइल I
38. दुपहरी खरुआइल देखनी: डॉ. हरेश्वर
गाँवन में फटहाली देखनी
नगरन में बदहाली देखनी
मेहनतकश लोगन के हाथे
खाली खाली थाली देखनी I
ठंढा चूल्हा चिसत देखनी
पैर बिवाई रिसत देखनी
मालिक लोगन के सेवा में
कइ गो एँड़ी घिसत देखनी I
अरमानन के जरत देखनी
हरिश्चंद के सरत देखनी
परवत जइसन दरद लेले
बाबूजी के मरत देखनी I
त्योहारन के रोवत देखनी
बीज फूट के बोवत देखनी
घोड़ा बेंच के साहूकार के
खर्राटा संग सोवत देखनी I
फूलन के मरुआइल देखनी
शूलन के अगराइल देखनी
अगहन पूस महीना में भी
दुपहरी खरुआइल देखनी I
37. प्यार में तोहरा पागल जिया हो गइल: डॉ. हरेश्वर
प्यार में तोहरा पागल जिया हो गइल
मोर निंदिया उड़ल चिड़िया हो गइल I
हमरा खाए नहाए के सुध ना रहल
ई सरिरिया सुखल छड़िया हो गइल I
दढ़िया बढ़ल केसवा अझुरा गइल
हमार दिलवा जरत बीड़िया हो गइल I
केहू पागल दीवाना काकादो कहल
केहू कहल कि ई बढ़िया हो गइल I
हमरा पंजरा कहेके त बहुत कुछ रहे
बाकि मिलनी त जीभ बुढ़िया हो गइल I
36. पतझड़ भइल अनंत: डॉ. हरेश्वर
रमकलिया के गाँव से
रूठ गइल मधुमास I
कोकिल से कंत बसंत रूठल
थापन से मिरदंग
कलियन से अंगड़ाई रूठल
फागुन भइल बेरंग I
परबतिया के पाँव से
लूट गइल अनुप्रास II
हरिया से होरी रूठल
हल्कू से सब खेत
छठिया से चूड़ी रूठल
बुधिया मर गइल सेंत I
करिया कगवा के काँव से
असवा भइल निरास II
फूलन से भौंरा रूठल
मोजर से रूठल सुगंध
फुलवारी से तितली रूठल
पतझड़ भइल अनंत I
बीच भँवर में नाव से
उठ गइल बिसवास II
35. देंह फागुन महीना हमार भइल बा: डॉ. हरेश्वर
हमार जहिआ से नैना दू से चार भइल बा,
हमरा भितरा आ बहरा बिहार भइल बा I
पहवा फाटल हिया में अंजोर हो गइल,
पाँख में जोस के भरमार भइल बा I
जाल बंधन के तहस नहस हो गइल,
सँउसे धरती आ अम्बर हमार भइल बा I
पूस के दिन बीतल बसंत आ गइल,
देंह फागुन महीना हमार भइल बा I
महुआ फुलाइल आम मोजरा गइल,
हमरा दिल में नसा बरियार भइल बा I
34. आँख में रात बहुते सयान हो गइल: डॉ. हरेश्वर
34. आँख में रात बहुते सयान हो गइल: डॉ. हरेश्वर
आँख में रात बहुते सयान हो गइल
हमार असरे में जिनिगी जिआन हो गइल I
दिल के दरिया में दर्दे के पानी रहल
देंह जइसे कि भुतहा मकान हो गइल I
आस के डोर टूटल कटल भाईजी
आइल सपनों त अचके बिहान हो गइल I
हमरा होंठ के बगानी में फूल ना खिलल
मन क चउरा क तुलसी झंवान हो गइल I
संउसे जिनिगी कटल उनकर रहिये तकत
मौत के राह बहुते आसान हो गइल I
33. जीय हो जीय ढाठा: डॉ. हरेश्वर
जीय हो जीय ढाठा
साठा में बनल रह बाईस के पाठा
जीय हो जीय ढाठा I
तोहके खियाइब मलीदा मलाई
बोतल के बोतल पियाइब दवाई
भुअरी के घीव से बनाइब फराठा
जीय हो जीय ढाठा I
तहरा के नयका पोशाक सियवाइब
महँगा मोबाइल जियो के किनवाइब
जूता पेन्हाइब तोहके नाइकी आ बाटा
जीय हो जीय ढाठा I
आन्ही आ पानी से तोहके बचाइब
फुलवा के सेजिया प तोहके सुताइब
एह जिनिगी के रही तहरा नावे बीसो काठा
जीय हो जीय ढाठा I
तहरा के तनिको उरेब केहु बोली
खाई हरेश्वर के सीना में गोली
उनुकर कुटाई जाई चौके प लाटा
जीय हो जीय ढाठा I
32. काहे मारेल मुसुकिया तू अइसन जनमार: डॉ. हरेश्वर
काहे मारेल मुसुकिया तू अइसन जनमार
कइल हियरा में हमरा दरारे-दरार I
मिलब त तोहके बताइब संघतिया
मुंहवा में तहरा लगाइब भभूतिया
तहरा मुस्की मिसाइल से होई तकरार I
दोसरा के देखि के तूं काहे मुसुकइल
वादा कइलका तूं काहे ना निभइल
दिलफेंक बनल छुटी तहार एही एतवार I
आव लवटि के तूं बउवा हरेसर
दिहब छोड़ाई तहार बनल परफेसर
तहरा मुस्की प बाटे हमार एकाधिकार I
31. अजबे खेल खेलावे जिनिगिया: डॉ. हरेश्वर
31. अजबे खेल खेलावे जिनिगिया: डॉ. हरेश्वर
अजबे खेल खेलावे जिनिगिया
अजबे खेल खेलावे I
आपन कबो पराया होले
कबो पराया आपन,
कबो गले में फूल के माला
कबो गले में नागन,
कबो हँसावे कबो रोवावे
कबो-कबो सुसुकावे जिनिगिया
अजबे खेल खेलावे I
कबो चढ़ावे सिकहर ऊपर
कबो उतारे पानी,
कबहूँ मिले महल अटारी
कबहूँ चुअत छानी,
कबो तपावे कबो काँपावे
कबो-कबो सिहरावे जिनिगिया
अजबे खेल खेलावे I
कबहूँ बेटा कबहूँ नाती
कबहूँ बाप बनावे,
कबहूँ छप्पन भोग खिआवे
कबहूँ नून चटावे,
कबो मुआवे कबो जिआवे
कबो-कबो तड़पावे जिनिगिया
अजबे खेल खेलावे I
कबो लड़कपन कबो बुढ़ापा
कबहूँ चढ़त जवानी,
सर प कबहूँ दूध ढरेला
कबहूँ ढाबर पानी,
कबो उठावे कबो गिरावे
कबो-कबो घिंसिआवे जिनिगिया
अजबे खेल खेलावे I
30. कहाँ गइल बचपन के गाँव: डॉ. हरेश्वर
इ कइसन पचपन के गाँव
कहाँ गइल बचपन के गाँव I
मधुमास के कोयल रानी
सुखिया दादी बड़की नानी
माई के आँचल के छाँव
कहाँ गइल बचपन के गाँव I
खट्टा-मिट्ठा आम टिकोरा
बूँट-मटर के सोन्हा होरा
छान्ही प के कौआ काँव
कहाँ गइल बचपन के गाँव I
साँझी के आल्हा के तान
सगी सरौती मीठा पान
मितान के संग लट्टू दाँव
कहाँ गइल बचपन के गाँव I
होरी चैती कजरी रानी
गुड़ के भेली लोटा पानी
नीम बरगद पीपल के छाँव
कहाँ गइल बचपन के गाँव I
29. अँखियन के आकाश सूना हो गइल: डॉ. हरेश्वर
अँखियन के आकाश
सूना हो गइल I
सब तारा भइलन स खेत
सपना सब भइलन स रेत,
पंखियन के परिहास
चूना हो गइल I
खेतवन प पाला पड़ल
पेटवन प भाला गड़ल,
ख़ुशीयन के बनवास
दूना हो गइल I
बंसवारी के शामत आइल
फुलवारी प आफत आइल,
कलियन के खरवांस
चौगुना हो गइल I
फेंड़ छोड़ के भगले तोंता
उजड़ गइल बा उनकर खोंता,
डलियन के संत्रास
सौगुना हो गइल I
28. सुन्दर भोर: डॉ. हरेश्वर
अम्बर के कोरा कागज़ प
ललका रंग छिंटाइल बा,
सोना रंग सियाही से
सुन्दर भोर लिखाइल बा I
नीड़ बसेरन के कलरव के
सगरो तान छेड़ाइल बा,
अन्धकार के कबर के ऊपर
आस उजास रेंड़ाइल बा I
मंद पवन मकरंद बनल बा
नीलकमल मुसुकाइल बा,
मोती रूप ओस धइले बा
गुलमोहर सरमाइल बा I
भानु बाल पतंग बनल बा
तितली दल इतराइल बा,
कोयल, संत, सरोज, बटोही
सबके मन अगराइल बा I
27. तू सुन्दर बिहान लागेलू: डॉ. हरेश्वर
तोहके सुन्दर बनवले भगवान
पूनम के तू चान लागेल I
रंग देहियाँ के सोना समान
तू सुन्दर बिहान लागेलू II
सेउआ सरीखा कपोल लाले-लाले
सुन्दर मस्त नयन मतवाले I
ओठवा तहार रसखान
तू मेनका समान लागेलू II
खीरा के बिया सरीखा दांत पाँती
गरवा तहार बा सुराही के भाँती I
मीठ बोलिया लवाही समान
खुदा के बरदान लागेलू II
तहरा के देखी भँवरा बउराला
सुन्दर फूल समझि मेंड़राला I
झूठ जायसी के नायिका बखान
बसंत के उठान लागेलू II
तहरा से बाटे एकहि हथजोरिया
बउवा हरेश्वर प फेरि द नजरिया I
कइ द जीवन के पुर अरमान
तू देबीजी महान लागेलू II
26. उरुआ बन्दना: डॉ. हरेश्वर
सुन लीं अरजिया हमार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
जोड़िला हाँथवा गोड़वा परिला
भजिला दाँत चिहार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
मोहक चोंच नयन अभिरामा
रतिया के रउरा सरदार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
रउवे हमार साँढू रउवे हमार मउसा
सरहज के रउवे भतार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
अबकी दिवलिया प दीं दरशनवा
बोतल संगे करब इंतजार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
रात अढ़ाई बजे माई लेके आइब
माल गिराइब छपर फार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
बउवा हरेश्वरजी के अंतिम अरज बा
मारीं पडोसी के भिथार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
25. आइ हो दादा: डॉ. हरेश्वर
सपना देखनीं भोरहरिया
आइ हो दादा,
मुखिया हो गइल मोर मेहरिया
आइ हो दादा I
हमरा दुअरा उमड़ रहल बा
सउँसे गाँव जवार,
लाग रहल बा देवीजी के
नारा बारम्बार,
डीजे बाजता दुअरिया
आइ हो दादा I
ढोल नगाड़ा बाजे लागल
जुलुस निकलल भारी,
आगे आगे नवका मुखिया
पीछे से नर नारी,
बड़ुए मध दुपहरिया
आइ हो दादा I
चौकठ-चौकठ घूमे लगली
नवा नवा के सीस,
बड़ बुढ़न से माँगत गइली
अपना के आसीस,
गोड़ प ध ध के अंचरिया
आइ हो दादा I
उनकर पीए हो गइनी हम
दून भइल मोर सान,
आगा पाछा घुमत बानी
सुबह से लेके साम,
छोड़ के खेत आ बधरिया
आइ हो दादा I
24. लूटीं लूट मचल बा: डॉ. हरेश्वर
लूटीं लूट मचल बा सगरो
लूटीं लूट मचल बा I
बाढ़ लूटीं, सूखा लूटीं
राहत के लूटीं मिठाई,
भूख लूटीं, पियास लूटीं
लूटीं थोड़की महंगाई I
वोट लूटीं, नोट लूटीं
लूटीं चकाचक नारा,
रैली लूटीं, रैला लूटीं
गटकीं देशी ठर्रा I
राज लूटीं, लाज लूटीं
लूटीं तनिका मह्मारी,
जात लूटीं, पाँत लूटीं
लूटीं मौत बीमारी I
दिल्ली लूटीं, पटना लूटीं
लूटीं छपरा आरा,
गोर लूटीं, करिया लूटीं
लूटीं दखिन दियारा I
पगड़ी, चूड़ी, साड़ी लूटीं
लूटीं गुलाबी वादा,
लूटीं सभे लूट मचल बा नर होखीं भा मादा I
23. नेह भरल पाती: डॉ. हरेश्वर
नेह भरल पाती
अब ना आवे ।
ऊंघाअइल माई के लोरी
गूंग भइल चैती आ होरी ।
सुखिया दादी पराती
अब ना गावे ।
दरक गइल आंगन के छाती
चूल्हा फोरि बँटाईल माटी ।
पुरनियाँ के थाती
अब ना भावे ।
22. सुन्दर खेत बनाइब हम: डॉ. हरेश्वर
22. सुन्दर खेत बनाइब हम: डॉ. हरेश्वर
गमछी भर लेके आकाश
सुन्दर खेत बनाइब हम,
एक कटोरा तारा-बिया
ले ओहमें फैलाइब हम I
बियन के अंकुरावे खातिर
मुट्ठी भर बदरी ले आइब,
पौधन के उपजावे खातिर
दिया भर सुरुज छींटवाइबI
तारन से जब खेत भरी त
नाचब कुदब गाइब हम,
दूज चान के हँसुआ लेके
कटवाइब बन्ह्वाइब हम I
तारा के बोझन से भरब
गाँवन के खलिहान
ताव देत मोंछ्न प घुमिहें
देशवा के किसान I
21. मन उदास बा: डॉ. हरेश्वर
21. मन उदास बा: डॉ. हरेश्वर
सुक्खल नदी जस
मन उदास बा I
चाँद जस आस में
लागल बा गरहन,
सपना के पाँखी प
घाव भइल बड़हन,
डेगे डेग पसरल
खाली पियास बा I
आँखी के बागी में
पतझड़ के राज बा,
मन के मुंडेरा प
गिर रहल गाज बा,
उदासी के गरल से
भरल गिलास बा I
हँसी के फूल प
उगल बा शूल
ख़ुशी के खेत में
उगल बबूल,
जिनिगी सरोवर के
घाट बदहवास बा I
20. आवले बोलता नयका बिहान: डॉ. हरेश्वर
हर के कलम से
धरती के कागज प
पसीना के सियाही से
जीवन उकेरे ला किसान
बाकिर ओकरे घटल रहता
चाउर पिसान !
ओकरे पसीना
अतना सस्ता काहे बा
ओकरे हालत
अतना खस्ता काहे बा
सवाल प सवाल
पूछता किसान ?
चुप्पी टूटल बा
त बुढ़िया आन्ही अइबे करी
ताश के पत्ता से बनल
ताज तखत उड़इबे करी
आ अन्हरिया के होई
सम्पुरने भसान I
उगिहें सुरुज
पुरुबवाके ओर
झाँकी किरिनिया
अंगनवा के ओर
बदलल बा मिजाज मौसम के
आवले बोलता नयका बिहान I
19. दीप: डॉ. हरेश्वर
19. दीप: डॉ. हरेश्वर
घोर अमावस के पूनम में
बदल रहल बा दीप,
मद में आन्हर अन्धकार के
मसल रहल बा दीप I
कठिन दौर से गुजर-गुजर के
निकल रहल बा दीप,
गिर रहल बा, उठ रहल बा
संभल रहल बा दीप I
आन्ही पानी में भी हरदम
टिकल रहल बा दीप,
भय, निराशा, निर्बलता के
निगल रहल बा दीप I
मन में लेके आस भोर के
मचल रहल बा दीप,
हरेक बार अपना मिशन में
सफल रहल बा दीप I
18. गजब-गजब के गुल: डॉ. हरेश्वर
गगन बाग़ में खिल रहल बा
सितारन के फूल,
भुईंया ऊपर उग रहल बा
जटही अउर बबूल I
माड़-भात प गरहन लागल
कोंहड़ा फूल किराइल बा,
कोदो सावाँ मडुआजी के
दिन बहुत पतराइल बा I
गधपुरना के सामत आइल
नोनी करमी गइल सुखाय,
दिन फिरल गोबरछत्ता के
गाजर घास बहुत अगराय I
गजब गति से पनप रहल बा
बेशरम के कुल
कुक्कुरमुत्ता खिला रहल बा
गजब गजब के गुल I
17. उरुआ बन्दना: डॉ. हरेश्वर
सुन लीं अरजिया हमार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
जोड़िला हाँथवा गोड़वा परिला
भजिला दाँत चिहार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
मोहक चोंच नयन अभिरामा
रतिया के रउरा सरदार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
रउवे हमार साँढू रउवे हमार मउसा
सरहज के रउवे भतार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
अबकी दिवलिया प दीं दरशनवा
बोतल संगे करब इंतजार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
रात अढ़ाई बजे माई लेके आइब
माल गिराइब छपर फार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
बउवा हरेश्वरजी के अंतिम अरज बा
मारीं पडोसी के भिथार, उलुकदेव
सुन लीं अरजिया हमार I
16. रउआ बिटियन प खूबी इतराईं भाईजी: डॉ. हरेश्वर
रउआ बिटियन के खूबहिं पढ़ाईं भाईजी
रउआ बिटियन के खूबहिं लिखाईं भाईजी।
भेदभाव के भूत भगाईं प्रेम के जोत जलाईं
नेह-छोह के खाद डालके सुन्दर फूल खिलाईं,
रउआ बिटियन के बेनिया डोलाईं भाईजी
रउआ बिटियन के झुलुआ झुलाईं भाईजी ।
तनिका सा ढीली छोड़ब त धइ ली इ आकास
चाँद सुरुज जइसन फैलाई दुनियाँ में परकास,
रउआ बिटियन के खूबहिं हँसाईं भाईजी
रउआ बिटियन के खूबहिं खेलाईं भाईजी ।
घर के बन दरवाजा खोलीं खुला समर में लड़े दीं
ऊँचा से ऊँचा परवत प छोड़ीं ओहके चढ़े दीं,
रउआ बिटियन के खूबहिं लड़ाईं भाईजी
रउआ बिटियन के खूबहिं बढ़ाईं भाईजी ।
एक हाथ में पेन धराईं दूजे में तलवार
नाया नाया गीत रचे दीं भरे दीं हुंकार,
रउआ बिटियन के निरभय बनाईं भाईजी
रउआ बिटियन प खूबी इतराईं भाईजी ।
15. भजो रे मन हरे हरे: डॉ. हरेश्वर
नियरे बा फेन से चुनाव
भजो रे मन हरे हरे ।
कौअन के होइ काँव काँव
भजो रे मन हरे हरे ॥
पाँच साल पर साजन अइहें
गेंदा फूल गले लटकैहें।
चारु ओरे होइ तनाव
भजो रे मन हरे हरे ॥
हाँथ जोरि के मुँह बनइहें
आपन पनही अपने खइहें।
चलिहें गजब के दाव
भजो रे मन हरे हरे ॥
मुँह उठवले भटकत मिलिहें
हर दर माथा पटकत मिलिहें ।
छुअत चलिहें मुँह पाँव
भजो रे मन हरे हरे ॥
बालम वादा बाँटत फिरिहें
थूकत फिरिहें चाटत फिरिहें ।
पउआ बँटाई हर गाँव
भजो रे मन हरे हरे ॥
जीतिहें जइहें फेर ना अइहें
लुटिहें कुटिहें पिहें खइहें।
पूछिहें कब्बो ना नाँव गाँव
भजो रे मन हरे हरे ॥
होखल जरूरी बा इनकर दवाई
एहिमें बड़ुए सभकर भलाई ।
दिहल जरुरी बा घाव
भजो रे मन हरे हरे ॥
14. बेटी बिना जियल अपमान लागेला: डॉ. हरेश्वर
जइसे चंदा बिना सून आसमान लागेला
ओइसे बेटी बिना जीवन सुनसान लागेला ।
बेटी देबी, बेटी दुरगा, बेटी कालीमाई
मीरा सीता गीता बेटी बेटी लछमीबाई,
जइसे गुड़ बिना फीका पकवान लागेला
ओइसे बेटी बिना आगन समसान लागेला ।
पूजा के थाली ह बेटी बेटी तीरथ धाम
नदिया के पानी ह बेटी बेटी ह बरदान,
जइसे आदित बिना बसिहा बिहान लागेला
ओइसे बेटी बिना दुनियाँ जहान लागेला ।
सावन बेटी पावन बेटी बेटी रितु बसंत
तितली कोयल मैना बेटी आशा-खुशी अनंत,
जइसे गोरेया बिन बधारी के सिवान लागेला
ओइसे बेटी बिन मतारी के मकान लागेला ।
बिटिया के बिना इ दुनियाँ हो जइहें बिरान
इनकर देखि उपेक्षा लोगे खिसिअइहें भगवान,
जइसे उपज बिना खेत खरिहान लागेला
ओइसे बेटी बिना जियल अपमान लागेला ।
13. गलकल रीत: डॉ. हरेश्वर
गाईं कइसे
अँटकल गीत.
सून दुआरा
अंगना सून
मन में पइठल
पसरल जून
कर से हमरा
सरकल जीत.
धवरा सोकना
ठाढ़ उदास
भुअरी के
उखड़ल बा सांस
चलनी छानी
दरकल भीत.
बचवा बम्बे
दिल्ली बचिया
हमरा संग
चितकबरी बछिया
इहे आज के
गलकल रीत.
12. का का सियाईं: डॉ. हरेश्वर
आँखिन के अम्बर में, बाझ मेड़राता ।
छातिन के धरती प, रेगनी फुलाता ॥
गऊआं के पाकड़ प, बइठल बा गीध ।
मुसकिल मनावल बा, होली आ ईद ॥
खेतन में एह साल, फुटि गइल भुआ ।
सहुआ दुअरिये प, बइठल बा मुआ ॥
अदहन के पानी में, जहर घोराइल बा ।
साँस लेल मुसकिल बा, हावा ओराइल बा ॥
जीवन के डेंगी में, भइल बा भकन्दर ।
लागता कि डूबी इ, बीचे समन्दर ॥
चूर भइल सपना, भाग भइल घूर ।
रोपतानी आम त, उगता बबूर ॥
मू गइले बाबूजी, भइल ना दवाई ।
माई के पिनसिन प, होता लड़ाई ॥
बुचिया के आँखि में, माड़ा फुलाइल बा ।
मेहरि के ठेहुन के, तेल ओरियाइल बा ॥
बउआ हरेसवर जी, का का बताईं।
चारु ओरे फाटल बा का का सियाईं॥
11. कइसे मनावल जाई फगुआ देवारी: डॉ. हरेश्वर
रोवतारे बाबू माई
पुका फारि फारी,
बए क के कीन लेहलस
पपुआ सफारी I
साल भर के खरची बरची
कहवाँ से आई,
चाउर चबेनी के
कइसे कुटाई,
कइसे लगावल जाई
खिड़की केवारी I
छठ एतवार कुल्ही
फाका परि जाई,
बुचिया के कहवाँ से
तिजीया भेजाई,
कइसे मनावल जाई
फगुआ देवारी I
रांची बोकारो घूमी
घूमि गाँवाँ गाँईं,
ललकी पगरिया बान्ही
भाईजी कहाई,
लफुअन से मिले खातिर
जाई माराफारी I
चिकन मटन के संगे
दारू खूब घोंकी,
पी के पगलाई त
कुकुर जस भोंकी,
कुरुता फरौवल करी
लड़ी फौजदारी I
10. आस के पात: डॉ. हरेश्वर
मन ठूंठ पर
आस के पात आइल ।
जेठ माह के तपन सेराइल
सावन के आइल पुरवाई
तन अगस्त के फूल भइल
हर गोड़न से गइल बेवाई ।
बगिया के
गइल तोता हाथ आइल।
मन पुरइन के पात भइल
जोन्ही भइल तन्हाई
ओठ फ़ाग के गीत भइल
आँखि भइल अमराई ।
नवनीत से
नहाइल रात आइल ।
9. अइसन करिह जनि नादानी: डॉ. हरेश्वर
गउआँ छोड़ि शहर जनि जइह
होइ ख़तम निशानी
जवानी खपि जाइ बचवा,
अइसन करिह जनि नादानी
जवानी खपि जाइ बचवा I
खेत छुटि खरिहान छुटि
आ छूटिहें बाबू माई,
अंगना दुअरा सब छुटि जइहें
छूटिहें छोटका भाई,
फूट-फूट के रोइब बबुआ
हो जइब बेपानी
जवानी खपि जाइ बचवा I
गली गली मीरजाफर ओहिजा
चउक चउक जयचंद,
टूँड़ उठवले बिच्छी मिलिहें
फू फू करत भुजंग,
चउबीस घंटा होइ पेराई
होइ कमर कमानी
जवानी खपि जाइ बचवा I
लटपटियन के फेरा में तू
बबुआ जब परि जइब,
दिने तरेगन लउके लागी
ओका जस मुँह बइब,
बाप बाप चिचियइब बाकिर
केहुओ ना पहचानी
जवानी खपि जाइ बचवा I
बासी बासी भोर मिली
अरूआइल साँझ उदास,
पाँख नोचाइल चिरईं बनब
भुइँया गिरी आकाश
आन्हर गूंग बहिर होइ जइब
होइ ख़तम कहानी
जवानी खपि जाइ बचवा I
8. गजबे बा इ देश: डॉ. हरेश्वर
गजबे बा इ देश रे भइया
खल खल के गीत गावेला ।
सत्य बुद्ध के कहाँ गइल
उपनिषद के शांति कहाँ गइल
राष्ट्रपिता के अहिंसा
कहाँ भगत के क्रांति गइल ।
उज्जर झक खादी के ऊपर
छलिया दाग लगावेला ।
पंचयत के चौपालन पर
पांचाली के चीर हराता
लाशन के टीला पर बइठल
भेड़िया अजब गजब मुस्काता ।
अखबारन के पन्नन से
गंध चिराइन आवेला ।
लोकतंत्र के सुन्दर मुँह पर
घाव भइल बा भारी
चोर उचक्का राजा बनले
मेहनतकश भिखारी ।
छल परपंच करेवाला ही
एहिजा सब कुछ पावेला ।
7. हमार गाँव: डॉ. हरेश्वर
हमर गऊआँ गजब अलबेला
उदास कभी होखे ना देला ।
ओहि मोरा गऊआँ में बलवाँ बधरिया
धानी चुनरिया में लागे बहुरिया
दोल्हा पाती ओहिजे जमेला
उदास कभी होखे ना देला ।
ओहि मोरा गऊआँ में चाना के पुलिया
मछरी फँसावे ला लागेला जलिया
ओकर पीपर त लागे झुमेला
उदास कभी होखे ना देला ।
ओहि हमर गऊआँ में जिला चउकवा
ओहिजे मिलेला सउँसे गाँव के सनेसवा
ओहिजा कुछु कुछु केहु बकेला
उदास कभी होखे ना देला ।
ओहि मोरा गऊआँ में काली स्थनवा
रोजे रोज होखेला उनुकर पुजनवा
उनुके किरिपा से गऊआं हँसेला
उदास कभी होखे ना देला ।
6. चंदा के ले आव ना: डॉ. हरेश्वर
ए कोइलरी ! आव ना।
मिसिरी जस गीत सुनाव ना ॥
तरवाईल तन के उजास
मन के मिठास मरुआईल बा।
अंदर तक खालीपन पसरल
साख पाँख लरुआईल बा ।
तितली रानी ! आव ना ।
अपना संगे उड़ाव ना ॥
बाबूजी भइलन मरियाठी
माई माँस के गठरी ।
बिकी गइल भुअरी पाड़ी
बिकी गइल झबरी बकरी ।
कुतुर कुतुर के सुग्गा राजा ।
आम प आम गिराव ना ॥
पूल कठहवा टूटि गइल
उजरि गइल फुलवारी ।
दिआँका चौकठ चाट गइल
खिड़की सड़ल बेचारी ।
मैना रानी ! फुदक फुदक के ।
सुन्दर नाच देखाव ना ॥
ढेंकी बिधवा हो गइल
भरकल दुअरा के कूप ।
जाँता भूखे मर रहल
बचल ना चलनी सूप।
बहक चल पुरवैया रानी ।
अंदर तक महकाव ना ॥
चिपरी बिन बा गाड़ा सुतल
मथनी गिरल हताश ।
काजर बिन कजरौटा सूना
लुढ़कल पड़ल निराश ।
सुन ल मोरी साँझ पियारी।
चंदा के ले आव ना ॥
5. गजब हो गइल: डॉ. हरेश्वर
माई घरे तोरा कहयिनी
सासु घरे रउरा
गजब हो गइल
भइनी गउरी से गउरा
गजब हो गइल।
कनियाँ बनके ससुरा अइनी
सासु खूब खिअवली
पुहुट बनावे खातिर हमके
खुबे दूध पियवली
देखते देखत हो गइनी हम
गरइ से सउरा
गजब हो गइल।
चूल्हा मिलल चउका मिलल
मिलल चाभी ताला
रिन करज के बोझा मिलल
मिलल छान्ही के जाला
कुछे दिन में हो गइनी हम
कठेला से मऊरा
गजब हो गइल।
मुँह सुखाइल बार झुराइल
आँख कान बेराम
एह जिनिगी के गजब खेल बा
समझ ना आइल राम
समय बनवलस हमके भइया
दउरी से दउरा गजब हो गइल।
4. रंगदार हो गइल: डॉ. हरेश्वर
रंगदार हो गइल
मोरा गाँव के लल्लू I
ठेलठाल के इंटर कइलस
बीए हो गइल फेल,
रमकलिया के रेप केस में
भोगलस कुछ दिन जेल,
असरदार हो गइल
मोरा गाँव के लल्लू I
खादी के कुरूता पयजामा
माथे पगड़ी लाल,
मुँह में पान गिलौरी दबले
चले गजब के चाल,
ठेकेदार हो गइल
मोरा गाँव के लल्लू I
पंचायत चुनाव में
कइलस नव परपंच,
समरसता में आग लगवलस
चुनल गइल सरपंच,
सरकार हो गइल
मोरा गाँव के लल्लू I
3. चलीं अपना गाँव: डॉ. हरेश्वर
3. चलीं अपना गाँव: डॉ. हरेश्वर
चलीं अपना गाँव
तनि सा घूम आईं I
पत्थल के एह नगरिया में
पथरा गइलीसन आँख,
टुटल डाढ़ी अस गिरल बानी
कटल परल मोर पाँख,
लागल बा चोट कुठाँव
त कइसे धूम मचाईं I
खिसियाइल दुपहरिया में
तिल तिल के तन जरता,
नोनिआइल देवालिन में
नोनी जस मन झरता,
ओहिजे मिली नीम छाँव
तनिसा झूम आईं I
छाँह नदारद ठाँह नदारद
माहुर उगलत नल,
का जाने कइसन बा आपन
आवेवाला कल,
दादी अम्मा के पाँव
तनि सा चूम आईं I
2. कमाइ दिहलस पपुआ: डॉ. हरेश्वर
2. कमाइ दिहलस पपुआ: डॉ. हरेश्वर
पढ़ि लिखि के का कइल
भईया पढ़वईया,
कमाइ दिहलस पपुआ
खाँचा भर रुपईया I
मंत्री बिधायकजी के
खास भइल बड़ुए,
गऊआँ के लफुअन के
बॉस भइल बड़ुए,
आ मुखियाजी के काँख के
भइल बा अँठईया I
मुंशी पटवारीजी के
करेला दलाली,
मुँहवा में पान लेके
करेला जुगाली,
आ भोरहिं से लाग जाला
फाँसे में चिरईयाँ I
हिंदी-अंगरेजी
भोजपुरी बोलि लेला,
बनब त बन हरेसर
ओकर पकवा चेला,
पढ़ल लिखल छोड़छाड़ के
बन जा पप्पू भईया I
1. हमार जान ह भोजपुरी: डॉ. हरेश्वर
हमार शान ह
हमार पहचान ह भोजपुरी,
हमार मतारी ह
हमार जान ह भोजपुरी I
इहे ह खेत, इहे खरिहान ह
इहे ह सोखा, इहे सिवान ह,
हमार सुरुज ह
हमार चान ह भोजपुरी I
बचपन बुढ़ापा ह, ह इहे जवानी
चूल्हा के आगि ह, अदहन के पानी,
हमार साँझ ह
हमार बिहान ह भोजपुरी I
ओढिला इहे, इहे बिछाइला
कुटिला इहे, इहे पिसाइला,
हमार चाउर ह
हमार पिसान ह भोजपुरी I
इहे ह धरन, इहे ह छानी
हमरा पसीना के इहे कहानी,
हमार तीर ह
हमार कमान ह भोजपुरी I
कजरी ह बिरहा ह, इहे ह फ़ाग
इहे कबीरा ह, इहे ह घाघ,
हमार बिरासत ह
हमार ईमान ह भोजपुरी I
डॉ. हरेश्वर
सतना, मध्यप्रदेश
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