भोजपुरी संसार: 01
भोजपुरी संसार
(मार्च 2022, वर्ष-1, अंक-1)
*जमुआँव गाँव विशेषांक*
प्रकाशक आ संपादक: हरेश्वर राय, सतना, मध्यप्रदेश
अनुक्रम:
1. सम्पादकीय:एह नेवान अंक में हम अपना गाँव के चार गो रचनकार लोगन के 05 05 गो रचना सामिल क के अपना bhojpuriyaa.com प एगो नया परयोग करे जा रहल बानी. पाठक लोगन के शुभकामना के दरकार बा.
2. एह अंक के रचनाकार: बिमल कुमार राय, उमेश कुमार राय, देवेन्द्र कुमार राय आ हरेश्वर राय
बिमल कुमार राय की रचनाएँ:
विमल कुमार ग्राम +पोस्ट - जमुआँव, थाना- पीरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार) |
1. चिरई: बिमल कुमार राय
कौना खोंतवा के हवु तु परान चिरई
चलs उजरल बसा द मोर मकान चिरई.
अँखिया चंचल गरदन सुराही नियन
नाकि सुगा के ठोर केशिया सियाही नियन
पइलु कहाँ शहद जस जुबान चिरई
चलs उजरल बसा द मोर मकान चिरई.
गलिया ओठवा गुलाबी ललाई नियन
गोर देहिया इ दूधवा मलाई नियन
कबो लौकल ना अइसन मुस्कान चिरई
चलs उजरल बसा द मोर मकान चिरई.
सोच गहिरा सागर गहराई नियन
बतिया असर करेला दवाई नियन
नाहीं देखनी तहरा जस उड़ान चिरई
चलs उजरल बसा द मोर मकान चिरई.
बनी जोड़ी इ राधा कन्हाई नियन
फैली खुशबू गुरही मिठाई नियन
हाथ मांगे आइब पता द अनजान चिरई
चलs उजरल बसा द मोर मकान चिरई.
2. हाथ मिलाईं गरवा लागाईं: बिमल कुमार राय
हाथ मिलाईं गरवा लागाईं
प्रीति पिआ के पेयास बुझाईं।
मउवत तनले रहेले आरी
झुठे आपुसे में मारामारी
उ ना बुझेले अब्बर जब्बर
चाहे जेकरे कटेला नंबर
स्वारथ काँटा उजारि पजारि के
परमारथ के फूल उगाईं।
हाथ मिलाईं गरवा लागाईं
प्रीति पिआ के पेयास बुझाईं।
जाति पाति के बिष मत घोरीं
साधु बनीं छोड़ हतेया चोरी
लहसे दिहीं हरियर गँछियन के
नोच नाचि मति ढेर पाप बटोरीं।
हियरा में पावन गंग बहाके
झगरा उलाहना सभ भुलाईं।
हाथ मिलाईं गरवा लागाईं
प्रीति पिआ के पेयास बुझाईं।
बइठे मत दीं ही में अन्हरिया
चले ना दी कबो सही डहरिया
फुहर पातर मति सोंच राखबि त
लहरि जाई सपना के नगरिया।
फूल बिछाईं भले ना राह में
बाकी बिन-बिन काँट कुस हटाईं।
हाथ मिलाईं गरवा लागाईं
प्रीति पिआ के पेयास बुझाईं।
३. बलमा: बिमल कुमार राय
पइल सुघर-साघर नरम मिजाज बलमा
तहरे माथे रही हरदम ताज बलमा।
बनि के धाधाये मोर हिया हिरनिया
लगनी कहाय रानी तहरे करनिया
करे देल ना छुइयो के काज बलमा।
आगे पीछे तहरा लछिमी घुमेली
पथरो के छुवेल ऊ सोना क देली
का सबका से अधिक देल ब्याज बलमा।
नथिया मँगनी दिहल सउसे दोकनिया
नखरा उठावेल कहि कहि प्यारी धनिया
खूब होखेला तहरा प नाज बलमा।
4. हमरा जातिये से बस सरकार चाहीं: बिमल कुमार राय
हमरा जातिये से बस सरकार चाहीं।
नोचे चोथे रोड भकोसे अलकतरा।
चोर चाईं होखे भा होखे छहितरा।
लुटे काटे मारे फारे अरु जनता के
आवे ना देवे हमरा जतिया प खतरा।।
ना चाही खास बिकास परकास हो
हमरा लूल्हे लंगड़े मौआर चाही।।
अमन चैन देखि-देखि जिया हुटहुटाला।
ढिढ़वा ई भरी कइसे कुछु ना बुझाला।
अउंघी ना लागे रतिया गड़ेला बिछौना
मारे खातिर सेंध अबो हाथ ककुलाला।।
रचिको ना घंटी शिवाला के सोहाये
हमरा रोजे हतेया बलात्कार चाही।।
राति में चरतीं कबरतीं आन टोपरी।
सान बघरतीं सवँरतीं दिन में बबरी।
दोसरा के फटला टंगरी घुसेड़तीं-
खुबे इतरइतीं बजइतीं हँसि हँसि थपरी।।
दइब दुवरे लगाइना रोज गुहार हो
परिवरवे से कुक्कुर भा बिलार चाही।।
5. बान्हि दे माई तिलवा: बिमल कुमार राय
काटे खातिर पिलिया धउरे
भिरी ना आवे पिलवा।
खाइब खियाइब हम बझाइब
बान्हि दे माई तिलवा।
नइखे ओकरा सुटर टोपी
खूब सातावे जाड़ा।
कूं-कूं कूं-कू रोज करेला
रहेला रोवाँ खाड़ा।
दुबर बा त छपले बाड़ं सन
आँखि कान अँठई ढिलवा,
खाइब खियाइब हम बझाइब
बान्हि दे माई तिलवा।
ठंढा ठंढा हवा बहेला
टोपी सुटर पहिरा दे।
गरम-गरम रोटी तरकारी
बना-बना के खिया दे।
दे दे माई जाके खिया दी
ई रोटिया फाजिलवा,
खाइब खियाइब हम बझाइब
बान्हि दे माई तिलवा।
हितवो मितवो लोभ में परि के
आजु क देता गदारी।
रही निभावत मुवला तक ई
हमनी संघे इयारी।
देला से खाली ना होई
अन-धन भरल कोठिलवा,
खाइब खियाइब हम बझाइब
बान्हि दे माई तिलवा।
उमेश कुमार राय की रचनाएँ:
उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव, थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार) |
1. गउआँ हेराइल बा: उमेश कुमार राय
तनि खोजवाव हो
हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा।
ढेंका के चोट आ जाँता के झींक
फेंड़वा से ढिलुहा आ खेतवा से हरवा
चिक्का कबड्डी आ गुल्ली-डंटा
पइन के कनवाह आ आहर-पोखरवा
दुअरा से बैलवो हेराइल बा
तनि खोजवाव हो
हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा।
चिरईं के चहक आ चबेनी के घोघी
गउआँ के लिखिया आ अगिया के चिपरी
दुअरा से पुरनियाँ आ घुघवा से गोरी
दुअरा से ललटेनवो हेराइल बा
तनि खोजवाव हो
हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा।
आल्हा-सोरठी आ गीता-रामायन
हरीस-जुआठ आ नाधा-पैना
गायडाढ़ आ सिवनवा से होलरी
गाड़ी के बांगड़ आ घरवा के मुड़ेरा
काका मुँहवा से दोहा-चौपाई हेराइल बा
तनि खोजवाव हो
हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा।
दोल्हा-पाती आ घुमरी-चकईया
रेंहट-दोन आ दँवरी-कल्हुआड़ी
बीच-बचाव आ मान-मनउअल
गाँव-डीहवार आ जगशाला-ठकुरबाड़ी
खरिहान से खटउरवो हेराइल बा
तनि खोजवाव हो
हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा।
कुँड़ा-भाँड़ी आ तासला-बटलोही
कोठीला-दियारखा आ चिठ्ठी-पतरी
पल्लू-दुपट्टा आ चद्दर के गाँती
कनेआ के लाज आ केनवाई के ठटरी
घरवे में अंगनवा हेराईल बा
तनि खोजवाव हो
हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा।
दुअरा के चरन आ चुहानी से चूल्हा
तीसी के तिसौरी आ महुआ के लाटा
ओखर-मुसर आ सिलवट-लोढ़ा
लुका-छिपी आ अखड़ा के पट्ठा
मरदन के मरदानगी हेराईल बा
तनि खोजवाव हो
हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा।
2. मजबूरी: उमेश कुमार राय
कब तक जुझबि रउआ किसानी में।
जियरा सकेता आ भागवा बा हेयारी में ।।
हरवा-बैलवा आ खेतवो बेंचाईल
तीज-त्योहार आईल-गईल ना बुझाईल
डाकटर-बैद के उधारी ना दिआईल
बबुनिया के लुगरी फगुओ में ना बदलाईल
कबले काटबि दिनवा परेशानी में
कब तक जुझबि रउआ किसानी में।
कवने जतन बिआहबि बिटिया
उजबुजात जियरा सुझे ना अकिलिया
दइब दगाबाज बुझस ना मजबुरिया
माहुर भईल अन-दाना हेराईल मतिया
नईया डूबे-डूबे भईल बा किनारी में
कब तक जुझबि रउआ किसानी में।
3. रे नोकरिया: उमेश कुमार राय
हहरवलस
छछनवलस
डहकवलस
रे नोकरिया!
तड़पवलस
जगवलस
सउंसे देसवा घुमवलस
रे नोकरिया!
डंटववलस,
पीटववलस,
खदेड़ववलस ,
रे नोकरिया!
मुँहचोर बनवलस
करजखोर बनवलस,
कुंअरपथ डललस
रे नोकरिया!
4. काहे ऊजबुजालs: उमेश कुमार राय
सीधे राहवा में, काहे भटभटालs ए भाई
भटक खुलजाई, काहे अऊँजालs ए भाई
अकबकईब तs, नीके उजबुक बन जईबs
अबकी दम लगाव त पार होईबs ए भाई।
बाकी लबरन से, छीनगाईल रहीह ए भाई
उ कतो अकबकइहें, ना झुझुअईह ए भाई
कवनो लफड़ा झमेला में, नाहीं अझुरईहs
दमी सधबs तs बुततो धधकीहन ए भाई।
केहु बघुआए तs, मति भकुअईह ए भाई
भक मारी उनका त, तू बुझ जईब ए भाई
अपने खूब चोन्हईहन आउर अगरईहन
खूँटा गड़ब आकाश में, त बुझीहन ए भाई।
बएरी मउरा सउरा के, ढेरे लोरईहन ए भाई
लोरा लोरा के उ लारपुआर, होईहन ए भाई
तबो तूँ आपन रहिया, तनिको नाहीं भोरईह
अबकी दम लगाव त पार होईबs ए भाई।
5. हमार गाँव: उमेश कुमार राय
भईया हो! हिन्दवा बसे मोरे गाँव,
ईहवाँ के पुरनियाँ के बा खूबे नाँव।
पढ़ाई-लिखाई में केहू ना थहलस,
पहिलका एमएस-सी शाहाबाद के दीहलस,
डाकडर-फरफेसर आ कमीशनर- डी एम,
ईनजीनियर आ मास्टर से पटल बा गाँव।
एमएलए - परिषद आ कवि-लेखक,
परसिध अर्थशासतरी आ विज्ञानिक,
गायक - उदघोषक आ सुनर बादक ,
बुद्धिजीवियों में बा एहिजा के नाँव।
शिवाला-यज्ञशाला अउर पाठशाला,
काली माई-शीतला माई आ गाँव-डीहवार,
बरह्म बाबा-सोखा बाबा आ सूरूज दरबार,
सती माई बसेली सीतल पकड़िया छाँव।
बैंक-डाकघर आउर पुस्तकालय,
नाहर-पईन आ आहर-पोखरा के पाट,
बाग-बगईचा अउर छठिया घाट,
हमनी के आन-बान-शान जमुआँव।
देवेन्द्र कुमार राय की रचनाएँ:
देवेन्द्र कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव, थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार) |
1. नियत के परदा: देवेन्द्र कुमार राय
कवनो बस्तर ले तोपले ना तोपाला बदन,
जब हियरे में बसल रही वासना के लगन।
जब नियत के नजरिया प राखबि हिजाब,
कतहीं दुनिया में जाइबि रहबि तब मगन।
बढ़िके नियत से परदा ना बनल कबो,
कुरसी खातीर न जग में लगाईं अगन।
जब लंगटपन के अंचरा सइंचि के चलब,
राय नीमन ना लागी होइ कवनो भजन।
2.एह जीनीगी के गजबे परिभाषा: देवेन्द्र कुमार राय
सभे जानता कि मरल अटल बा
फेरु काहे तोरा-मोरा में सटल बा,
एह जीनीगी के गजबे परिभाषा
लागे हरघरी कुछ न कुछ घटल बा।
चंदन-चोवा मलि-मलिके लगाईं
रचि-रचि के देखीं सिंगार रचाईं,
कतनो महल हम उँच बनवनी
काहे ओह से असली गंध ना पाईं।
3. निरधन के बेटी निशानी: देवेन्द्र कुमार राय
पइसा के बिना केहुके मिले ना दुअरा पानी,
निरधन के घर के बेटी बड़का निशानी।
बेटी के बाबूजी के कुछऊ ना सुझे,
बेटहा दहेजे लेल इज्जत के बुझे,
रीत प्रीत गुन सभ भइल बेईमानी
निरधन के घर के बेटी बड़का निशानी।
अपना कमाई के बडुए ना आस जी,
बेटीहा के देखते करेले परिहास जी,
कुरीतिया के आगि में डाली के पानी
निरधन के घर के बेटी बड़का निशानी।
अपना मनमानी के मानेले उ रीत के,
बढ़न के छोड़ बात मानेले अपना मीत के,
घर में भुंजी भांग ना बनेले बड़का शानी
निरधन के घर के बेटी बड़का निशानी।
अजबे समाज में बढ़ल खरवांस बा,
डेगे-डेगे कनिया के लउकत लाश बा,
निपटे नादान राय कहसु का कहानी
निरधन के घर के बेटी बड़का निशानी।
4. गजबे भइल संसार: देवेन्द्र कुमार राय
आगि लागल बा मन में बोताईं कहाँ
सुतल हियरा के फेरु से जगाईं कहाँ।
कुछ कहते छन दे छनकि जले उ
साँच बतिया के लोरी गवाई कहाँ।
पावल ना पद भूलि जा तारे हद
अइसन दरद प मलहम लगाईं कहाँ।
देवे के उपदेश उन्हुका आदत परल
हिमत रउरे बताईं कि पाईं कहाँ।
जे के देखीं उ फफकल उताने भइल
भाव से भरल बा खटिया बिछाईं कहाँ।
जाने दुनिया में गरिमा गरम काहे बा
राय के भुभुरी के अंचिया सराई कहाँ।
5. नेह बिना सब सून: देवेन्द्र कुमार राय
धीर के धारि सभके चेतावल करीं
पवनी कहवाँ रतन इ बतावल करीं।
हम त छनहीं में डूबीं उतरा जाइला
तनी भीतरी के मोती देखावल करीं।
केहु हमरा नजर से चिन्हात नइखे
साँच दरपन से परदा हटावल करीं।
प्रीत परती भइल धइल कुल्हिए गइल
रउरा ममता के बेनिया डोलावल करीं।
जहवाँ जाईं सवारथ के कादो मिले
राय एकरा से सभके बचावल करीं।
हरेश्वर राय की रचनाएँ
हरेश्वर राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव, थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार) |
1. अइले अइले बसंत बाह बाह: हरेश्वर राय
अइले अइले बसंत बाह बाह
हसीं जा हाहा हाहा।
तिसिया फुलइली मटर गदराइल
झुंड तितिली के उड़ेला इतराइल
बनल भंवरा बनल बदसाह
हसीं जा हाहा हाहा।
आम मोजरइले कली मुसुकइली
कंठा में मिस्री कोइल लेइ अइली
भइली पुरवा बड़ी नखड़ाह
हसीं जा हाहा हाहा।
हरियर चहचह भइली बंसवरिया
सरसों के रंगवा रंगइली बधरिया
होता भुईं सरग के बिआह
हसीं जा हाहा हाहा।
2. बे- परदे रहे के चलन चल रहल: हरेश्वर राय
नोकरी के माने गूलरिया के फूल
त पढ़ला पढ़ौला से का फाएदा।
जब बुझे के नइखे मरम नेह के
त नयना लड़ौला से का फाएदा।
जब मयवे में माँजे के रहे लेवाड़
त झोंटवा बढ़ौला से का फाएदा।
नाचे के नइखे जब तनिको सहूर
त घुघ्घुर बन्हौला से का फाएदा।
बे- परदे रहे के चलन चल रहल
त परदवा गिरौला से का फाएदा।
3. हमार भोजपुरी: हरेश्वर राय
हमार भोजपुरी हमार भोजपुरी
सुनरो से सुनरी हमार भोजपुरी।
भोर के ललाई ई शाम के सेनुरी
सरसों के पियरी हमार भोजपुरी।
राधा के मुस्की लवाही के गुल्ला
मधुरो से मधुरी हमार भोजपुरी।
मिसिर भिखारी के पूर्बी पेआरी
फूलन के दउरी हमार भोजपुरी।
अंगना के चौरा के तुलसी हई ई
मोहन के बँसुरी हमार भोजपुरी।
4. याद बा: हरेश्वर राय
पहिल फागुन के हमरा छुअन याद बा
फूल - भंवरा के हमरा मिलन याद बा।
केहु कनेआ कहल केहु भउजी कहल
कुल्ह बालम के घर के चलन याद बा।
हमके कोयल के बोली ना बिसरी कबो
हमरा सरदी के भोर के गलन याद बा।
कहियो चूल्हवा में अंगुरी सेंकाइल रहे
आजु ले हमरा ओकर जलन याद बा।
याद बा हमके ननदो के नखड़ा कइल
हमके गोदी में आइल ललन याद बा।
5. ए गोरी! खोलs केवारी: हरेश्वर राय
बा आइल बसंता दुआरी प, ए गोरी! खोलs केवारी।
उठल बा ताल ठकुरबारी प, ए गोरी! खोलs केवारी।।
नखड़ा देखावsतिया पुरवा बेयरिया
पिअरे पियर भइल दिल के बधरिया
मनs लटू हमार फुलवारी प, ए गोरी! खोलs केवारी।
उठल बा ताल ठकुरबारी प, ए गोरी! खोलs केवारी।।
कलियन से भौंरा करत बा ठिठोली
जिया के छेदतिया कोइलर के बोली
तनि ढरिं ना एह ब्रम्हचारी प, ए गोरी! खोलs केवारी।
उठल बा ताल ठकुरबारी प, ए गोरी! खोलs केवारी।।
बहुत बढ़िया प्रयास । शुभकामना ।
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